सौरभ सोनी, नईदुनिया, भोपाल:(International Tiger Day 2025,)देश में सबसे ज्यादा बाघ मध्य प्रदेश के जंगलों में पाए जाते हैं। इसी कारण राज्य को टाइगर स्टेट कहा जाता है। बाघों की बढ़ती संख्या के साथ ही उनकी सुरक्षा और संरक्षण बड़ी चुनौती बन गई है। पिछली बाघ गणना के अनुसार प्रदेश में 785 बाघ हैं और नए आंकड़े आने पर यह संख्या और बढ़ने की संभावना है।
हालांकि, बाघों की संख्या जितनी तेजी से बढ़ी है, उतनी ही तेजी से उनकी मौतें(Madhya Pradesh tiger crisis) भी हो रही हैं। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के ताजा आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष के केवल छह माह में ही 29 बाघों की मौत हो चुकी है। यानी औसतन हर महीने पांच बाघों की जान जा रही है। इनमें से प्रदेश के पांच टाइगर रिजर्व में 15 और रिजर्व के बाहर 14 बाघों की मौत हुई। वहीं, पूरे देश में इस वर्ष अब तक 108 बाघों की मौत दर्ज की गई है।
भारत सरकार बाघ संरक्षण के लिए राष्ट्रीय उद्यानों और टाइगर रिजर्व को तो बजट देती है, लेकिन खुले जंगलों में विचरण करने वाले बाघों के लिए कोई खास प्रावधान नहीं है। यही कारण है कि रिजर्व के बाहर बाघों की मौतें(Tiger deaths in India) अधिक होती हैं।
बाघों की संख्या बढ़ने से जंगलों में टेरिटरी का दायरा कम हो रहा है। टेरिटरी को लेकर आपसी संघर्ष बढ़ रहा है। इस साल एक दर्जन से अधिक बाघ आपसी संघर्ष में मारे गए हैं। विशेषज्ञ लगातार जंगलों के बीच कारिडोर विकसित करने की वकालत कर रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय शिकारी गिरोह सक्रिय
कई बाघों की मौत शिकारियों के फंदे या बिजली का करंट लगाने से हुई है। अंतरराष्ट्रीय शिकारी गिरोह भी सक्रिय हैं। हाल ही में वन विभाग ने ऐसे गिरोहों को पकड़ा है और पूछताछ में कई चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। इनके पास से बाघों के अंग भी बरामद हुए हैं।
आंकड़े:
इस वर्ष राज्यवार बाघों की मौत (NTCA आंकड़े)
अधिकारियों के बयान:
सुभरंजन सेन, मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक, मप्र ने कहा कि “बाघों की औसतन संख्या के अनुपात में मौतों का आंकड़ा बहुत कम है। मौतें ज्यादातर प्राकृतिक हैं। मध्य प्रदेश बाघों के लिए अनुकूल है। राज्यों के साथ समन्वय बनाकर बाघों की निगरानी की जा रही है।”
जसबीर सिंह चौहान, सेवानिवृत्त मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक, मप्र का कहना है कि “बाघ संरक्षण में मध्य प्रदेश अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। मृत्यु दर पर चर्चा करते समय शावकों की संख्या को नहीं भूलना चाहिए। अप्राकृतिक मौतों को रोकने पर ध्यान देना होगा।”