धनंजय प्रताप सिंह, नईदुनिया, भोपाल। मध्य प्रदेश भाजपा संगठन में इन दिनों एक अलग ही रंग दिख रहा है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने सरकार और संगठन के बीच समन्वय व निर्णय के लिए एक छोटी टोली गठित की है लेकिन इसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित ग्वालियर- चंबल अंचल का प्रतिनिधित्व ही नहीं है। यह भले ही सामान्य बात लगे लेकिन राजनीतिक संकेत कह रहे हैं कि अंदरखाने कुछ गड़बड़ है। इसके और कई कारण भी हैं। कैबिनेट बैठक में ज्योतिरादित्य समर्थक मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर का ग्वालियर की उपेक्षा के मुद्दे पर सरकार को आड़े हाथों लेना और शनिवार को अशोकनगर प्रवास के दौरान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का गुना- शिवपुरी के पूर्व सांसद केपी यादव के साथ कार्यक्रम साझा करना चौंकाने वाला रहा। केपी यादव वही हैं, जो ज्योतिरादित्य से नाराज होकर वर्ष 2019 में भाजपा में आए थे और ज्योतिरादित्य को ही लोकसभा चुनाव में हराया था। इस तरह कांटे से कांटा निकालने की बात भी इस राजनीतिक कहानी में फिट बैठ रही है।
बता दें, भाजपा ने नौ बड़े नेताओं की छोटी टोली बनाई है। यह समय-समय पर बैठकर सत्ता-संगठन से संबंधित मुद्दों पर निर्णय करेगी। इसमें मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल (मध्य भारत अंचल), उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल (विंध्य अंचल) व जगदीश देवड़ा (मालवा अंचल), मंत्री प्रहलाद पटेल (महाकोशल), कैलाश विजयवर्गीय (मालवा) व राकेश सिंह (महाकोशल) और संगठन महामंत्री हितानंद हैं।
मध्य प्रदेश की राजनीति में ग्वालियर-चंबल अंचल का हमेशा से दबदबा रहा है। वर्ष 2020 में जब ज्योतिरादित्य सिंधिया 22 कांग्रेस विधायकों के साथ भाजपा में आए तो तत्कालीन शिवराज कैबिनेट में भी इसी अंचल के नेताओं का बोलबाला हो गया था। अब एकदम स्थिति बदल गई है। विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर, जयभान सिंह पवैया, पूर्व मंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा, अनूप मिश्रा, यशोधरा राजे सिंधिया जैसे नेताओं वाले अंचल से भाजपा की छोटी टोली में किसी को न लिया जाना चौंकाता है।
दरअसल, विजयपुर विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में भाजपा ने कांग्रेस से आए रामनिवास रावत को चुनाव लड़ाया था। चुनाव से पहले उन्हें मंत्री भी बना दिया गया था। रामनिवास रावत चुनाव हार गए थे। यहीं से ज्योतिरादित्य और भाजपा संगठन व सरकार के बीच संबंधों में खटास आई थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा था कि उपचुनाव में मुझे नहीं बुलाया गया था, भाजपा ने इसे गलत ठहरा दिया। विवाद इतना बढ़ा कि राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष को बीच-बचाव करना पड़ा। तब से दोनों ही पक्षों में संबंध तल्ख हैं।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी अब सियासी दांव-पेच में माहिर हो गए हैं। इसी घटनाक्रम में शनिवार को जब डॉ. मोहन यादव अशोकनगर पहुंचे। ज्योतिरादित्य के धुर विरोधी केपी यादव के पिता की मूर्ति के लोकार्पण के बहाने उनसे नजदीकी का संदेश दे आए। इससे एक दिन पहले मुख्यमंत्री ने नरेंद्र सिंह तोमर के आवास पर जाकर मुलाकात भी की थी। डॉ. मोहन यादव की यही राजनीति सारी कहानी सार्वजनिक कर रही है। डॉ. मोहन यादव के कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का पांच बार मध्य प्रदेश आना भी उनकी ताकत बता रहा है। हेमंत खंडेलवाल जैसे अनुशासन प्रिय अध्यक्ष बनने से मध्य प्रदेश में अब सत्ता-संगठन बनाम ज्योतिरादित्य का अदृश्य राजनीतिक द्वंद्व जारी है।
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