
नवदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल। सर्दी-खांसी होते ही मेडिकल स्टोर से खुद एंटीबायोटिक खरीदकर खाना या थोड़ा आराम मिलते ही दवा का कोर्स बीच में छोड़ देना आपकी सेहत पर भारी पड़ सकता है। हालात यह हो गए हैं कि अब निमोनिया और मूत्र मार्ग संक्रमण (यूटीआई) जैसी सामान्य बीमारियों के इलाज में भी दवाएं बेअसर साबित हो रही हैं। यह चेतावनी एम्स भोपाल ने दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ''मन की बात'' कार्यक्रम में एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर होने (एएमआर) का मुद्दा प्रमुखता से उठाए जाने के बाद एम्स भोपाल ने आम जनता को इसके खतरों के प्रति आगाह किया है।
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एम्स भोपाल के डायरेक्टर माधवानंद कर ने बताया कि जब हम बिना डाॅक्टर की सलाह के एंटीबायोटिक खाते हैं, तो हमारे शरीर में मौजूद बैक्टीरिया उस दवा के खिलाफ लड़ना सीख जाते हैं। इसे मेडिकल भाषा में एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर) कहते हैं।
कर ने बताया कि इस खतरे से निपटने के लिए एम्स भोपाल ने कड़े कदम उठाए हैं। संस्थान में एक सुव्यवस्थित ''एंटीबायोटिक पालिसी'' लागू की गई है। डाॅक्टरों, नर्सों और मेडिकल स्टाफ को विशेष ट्रेनिंग दी जा रही है ताकि दवाओं का विवेकपूर्ण उपयोग हो। इसके अलावा मरीजों और उनके परिजनों को समझाने के लिए अस्पताल परिसर में नुक्कड़ नाटकों और पोस्टरों के जरिए जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है।
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प्रो. कर ने कहा कि ''मन की बात'' में इस मुद्दे को उठाने से जनता में जागरूकता बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि भारत सरकार का ''नेशनल एक्शन प्लान 2.0'' आने वाली पीढ़ियों के लिए दवाओं को सुरक्षित रखने की दिशा में एक अहम कदम है। उन्होंने अपील की है कि एंटीबायोटिक का उपयोग केवल योग्य डाक्टर की निगरानी में ही करें।