राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल। पदोन्नति के नए नियम को लेकर हाई कोर्ट जबलपुर में मंगलवार को सुनवाई होनी है। सरकार को उम्मीद है कि इसमें पदोन्नति का रास्ता निकल सकता है। ऐसा होता है तो चार माह के भीतर सभी विभागों में पात्र अधिकारियों-कर्मचारियों को पदोन्नत कर दिया जाएगा। ये सभी पदोन्नतियां सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन होंगी यानी पदोन्नति सशर्त रहेगी।
प्रदेश में न्यायालयीन मामलों को छोड़कर 2016 से पदोन्नतियां बंद हैं। तब से अब तक लगभग 80 हजार कर्मचारी बिना पदोन्नति के ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इससे कर्मचारियों में बढ़ रहे असंतोष को देखते हुए मोहन सरकार ने सभी संबंधित पक्षों से विचार-विमर्श करके पदोन्नति नियम 2025 तैयार किए लेकिन इसमें भी 2002 के नियम की तरह ही सामान्य वर्ग की उपेक्षा हुई। इस नियम को सामान्य पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी-कर्मचारी संस्था (सपाक्स) की ओर से हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है।
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न्यायालय ने राज्य सरकार को पुराने और नए नियम के अंतर के साथ यह बताने के निर्देश दिए हैं कि 2002 के नियम को समाप्त करने के हाई कोर्ट के निर्णय को जब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई तो फिर उस याचिका को वापस क्यों नहीं लिया गया। सरकार हाई कोर्ट में अपना पक्ष रख चुकी है।
इस मामले में अब मंगलवार को सुनवाई प्रस्तावित है। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि नियम में ही यह स्पष्ट किया गया है कि नए नियम से जो भी पदोन्नति दी जाएगी वह सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन प्रकरण के अंतिम निर्णय के अधीन रहेगी यानी पदोन्नति सशर्त रहेगी।
सूत्रों के अनुसार सरकार अपनी याचिका इसलिए वापस नहीं ले रही है क्योंकि ऐसा करने पर उसके ऊपर पुराने नियम से पदोन्नत हुए अधिकारियों-कर्मचारियों को पदावनत करने का दबाव बनेगा। सरकार ऐसा करना नहीं चाहती है। यही पक्ष सुनवाई के दौरान भी रखा जाएगा।
यदि हाई कोर्ट इससे सहमत हो जाता है तो फिर नौ साल से बंद पदोन्नति का रास्ता खुल जाएगा। इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने सभी विभागों से कहा गया है कि चार माह के भीतर सभी अधिकारियों-कर्मचारियों को एक-एक पदोन्नति अवश्य दे दी जाए।