धनंजय प्रताप सिंह, राज्य ब्यूरो, भोपाल। इन दिनों मध्य प्रदेश से लेकर दिल्ली तक अतिरिक्त पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को लेकर राजनीति चल रही है। कुछ दिनों में प्रस्तावित बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ओबीसी का मुद्दा और भी गहरा गया है। दरअसल, मध्य प्रदेश में ओबीसी के लिए आरक्षण 14 से 27 प्रतिशत किए जाने का श्रेय लेने के मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस के बीच लड़ाई चल रही है।
यह अलग बात है कि मामला सुप्रीम कोर्ट में है और आरक्षण में 13 प्रतिशत की वृद्धि के मुद्दे पर आठ अक्टूबर से नियमित सुनवाई करने वाला है। डॉ. मोहन यादव का पूरा जोर है कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण की लड़ाई जीत ले ताकि बिहार विधानसभा चुनाव में उनका परचम मध्य प्रदेश से बिहार तक छाया रहे। वैसे तो ओबीसी आरक्षण 14 से 27 प्रतिशत करने का निर्णय कांग्रेस की कमल नाथ सरकार ने वर्ष 2019 में किया था लेकिन हाई कोर्ट में मामला उलझ गया।
कुछ दिन पहले डॉ. मोहन यादव ने ऐसा दांव चला कि कांग्रेस अब ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर चारों खाने चित हो गई। डॉ. मोहन यादव ने ओबीसी आरक्षण की कानूनी लड़ाई के मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाई और उसमें कांग्रेस को भी इस बात के लिए सहमत कर लिया कि इस विषय पर वह सरकार के साथ है। सर्वदलीय बैठक में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और उमंग सिंघार द्वारा ओबीसी आरक्षण साथ-साथ लड़ने का निर्णय कांग्रेस की गले की हड्डी बन गया है। अब कांग्रेस कानूनी लड़ाई में भागीदारी भी नहीं कर पा रही है और विरोध भी नहीं कर पा रही है।
यह लड़ाई जीतकर मोहन यादव ने कानूनी लड़ाई के लिए दिल्ली में वकीलों की फौज खड़ी कर दी है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के लिए ओबीसी आरक्षण की लड़ाई बेहद महत्वपूर्ण भी है। यदि सुप्रीम कोर्ट में उनके प्रयासों से 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के पक्ष में निर्णय आया तो पूरा श्रेय सीएम और भाजपा को मिलेगा। इससे डॉ. मोहन यादव का कद पार्टी और देश में एक बड़े यादव नेता के तौर पर स्थापित हो जाएगा। भाजपा भी ओबीसी हितैषी होने की दुहाई देकर बिहार विधानसभा चुनाव में अपना प्रदर्शन और सुधार लेगी।
दूसरी तरफ बिहार में ओबीसी व यादव नेता तेजस्वी यादव को पटकनी देने के लिए डॉ. मोहन यादव भाजपा के तुरूप का पत्ता साबित होंगे। दरअसल, भाजपा की राजनीति का केंद्र इन दिनों ओबीसी हैं। मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव हों या लोकसभा चुनाव, भाजपा ने ओबीसी वर्ग को ही अधिक से अधिक टिकट दिए। मुख्यमंत्रियों की बात करें तो उमा भारती, बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान सभी ओबीसी वर्ग से ही हैं।
डॉ. मोहन यादव का कद भी पार्टी ने ओबीसी नेता होने के चलते ही बढ़ाया है। इससे पहले भी वर्ष 2022 में जब सुप्रीम कोर्ट ने पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण समाप्त कर दिया था तो तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूरी ताकत से सुप्रीम कोर्ट में इसकी कानूनी लड़ाई लड़ी और आरक्षण बहाल करवाने में भी सफल रहे। वैसे मध्य प्रदेश में ओबीसी पहले कांग्रेस के साथ ही रहता था। पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने सबसे पहले ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण दिया था, बाद में दिग्विजय सिंह सरकार ने इसे और भी मजबूत कर दिया था।
पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव में भी ओबीसी को आरक्षण देने का काम दिग्विजय सिंह ने किया था लेकिन वर्ष 2003 के बाद से ओबीसी वर्ग का बड़ा हिस्सा भाजपा के पक्ष में आ गया। इसके बाद भाजपा ने अपनी ओबीसी लीडरशिप को बेहद मजबूत कर लिया लेकिन कांग्रेस ओबीसी नेता तैयार करने में पीछे रह गई। पुराने दौर में कांग्रेस में सुभाष यादव जैसे धाकड़ नेता इस वर्ग के थे लेकिन बाद में कांग्रेस पिछड़ गई।
अरुण यादव को केंद्रीय मंत्री और फिर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया, लेकिन गुटीय खींचतान में फिर आगे नहीं बढ़ाया गया। अब पार्टी ने जीतू पटवारी को ओबीसी चेहरे के तौर पर आगे बढ़ाया है लेकिन पार्टी के भीतर ही उनकी स्वीकार्यता नहीं बन पा रही है। अब कांग्रेस ने पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल को विंध्य में आगे किया है। कद बढ़ाने के लिए एआइसीसी का सदस्य बनाया है।
इधर, भाजपा पर नजर दौड़ाएं तो ओबीसी नेताओं की फौज खड़ी कर ली है। मोदी सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण (संशोधन) विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित कराने के बाद से ही इस पर सियासत जारी है। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय यदि राज्य सरकार के विपरीत आया तो यह भाजपा की मुश्किलें भी बढ़ा सकता है। अब सबकी नजर सुप्रीम कोर्ट पर है। उसका निर्णय देश में राजनीति की अगली दिशा तय करेगा।
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