राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल। पीड़ित पक्ष हो या आरोपित, उन्हें डर दिखाकर पुलिसकर्मी रुपये ऐंठ ले रहे हैं। इसी माह भोपाल पुलिस की क्राइम ब्रांच के चार आरक्षकों को अधिकारियों के संज्ञान में बिना लाए आरोपित के विरुद्ध कार्रवाई करने के संदिग्ध आचरण के चलते निलंबित किया गया है। प्रदेश भर में ऐसे कई मामले इस वर्ष सामने आ चुके हैं, जिनमें लोकायुक्त पुलिस और आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) की ट्रेप कार्रवाई पुलिसवालों पर न के बराबर ही हो पा रही है।
सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों का कहना है कि आरोपित पक्ष तो दूर पीड़ित पक्ष भी पुलिस के डर से जांच एजेंसियों को शिकायत करने से बचता है। ऐसे में पुलिस को खुद अपना इंटेलिजेंस नेटवर्क मजबूत कर कार्रवाई करनी चाहिए। दोनों जांच एजेंसियों द्वारा किसी न किसी विभाग का औसतन एक कर्मचारी हर दिन रिश्वत लेते पकड़ा जा रहा है, लेकिन पुलिस के नाम मात्र के ही हैं। इंदौर में जरूर इसी माह एक उप निरीक्षक को एक लाख रुपये की रिश्वत लेते लोकायुक्त पुलिस ने रंगे हाथ पकड़ा था।
गौरतलब यह है कि पुलिस आयुक्त व्यवस्था वाले इंदौर और भोपाल शहर में घूसखोरी के ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें रिश्वत की राशि भी एक लाख से अधिक रही। इसी तरह भोपाल में फर्जी काल सेंटर चलाने वाले से पांच लाख रुपये घूस लेने का मामला सामने आ चुका है।
केस 1- भोपाल के ऐशबाग थाना क्षेत्र में फर्जी काल सेंटर चल रहा था। सेंटर की कई शिकायतें आने के बाद पुलिस ने कार्रवाई की। इसके बाद मामले को दबाने के लिए 25 लाख रुपये की रिश्वत मांगी गई। पहली किस्त में पांच लाख रुपये रिश्वत लेने-देने का सौदा तय हुआ। काल सेंटर संचालकों के साथ नरमी बरतने के सीसीटीवी फुटेज भी सामने आए। इसके बाद टीआइ जितेंद्र गढ़वाल सहित चार पुलिसकर्मियों को निलंबित कर उनके विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराई गई।
केस 2- जनवरी 2025 में उमरिया जिले के चंदिया थाने के प्रधान आरक्षक द्वारा 50 हजार रुपये की रिश्वत मांगने का ऑडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। पीड़ित ने एसपी से शिकायत की थी। पुलिस ने पीड़ित का ट्रैक्टर पकड़ा था, जिसे छोड़ने के लिए रिश्वत मांगी थी। शिकायतकर्ता ने यह भी बताया था कि वह पहले 15 हजार रुपये घूस दे चुका था। इसके बाद पुलिसकर्मी ने 50 हजार रुपये और मांगे थे।
लोकायुक्त पुलिस के पूर्व डीजी अरुण गुर्टू ने कहा कि पुलिसवालों की शिकायतें करने से लोग डरते हैं। उन्हें लगता है कि किसी अधिकारी से शिकायत की तो पुलिसकर्मी पर कार्रवाई नहीं होगी, उल्टा उसे परेशान किया जाएगा। इसी कारण जांच एजेंसियों के पास शिकायतें नहीं पहुंचतीं और पुलिसकर्मी बचे रह जाते हैं। ऐसे में भ्रष्टाचार खत्म करना है तो बहुत जरूरी है कि पुलिस सबसे पहले अपना इंटेलिजेंस नेटवर्क मजबूत करें, जिससे रिश्वतखोरों को पकड़ा जा सके। सरकार का पहला काम प्रबंधन है, जिसमें कानून-व्यवस्था का पालन और भ्रष्टाचार रोकना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।