नई दिल्ली। जनहित याचिका को प्रचार हित याचिका बताते हुए खजुराहो में भगवान विष्णु की सात फीट ऊंची मूर्ति की दोबारा स्थापना से जुड़ी याचिका सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने सुनने से इनकार कर दिया। कहा कि इसमें केवल प्रचार पाना ही उद्देश्य नजर आता है। जाइए और भगवान से कहिए कि वे खुद कुछ करें। आप खुद को भगवान विष्णु का उपासक कहते हैं तो प्रार्थना करिये और थोड़ा ध्यान लगाइए।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा था कि मुगलों के आक्रमण के दौरान मूर्ति के सिर को नुकसान पहुंचाया गया है और अदालत से इसके पुनर्निर्माण में हस्तक्षेप की मांग की थी। पीठ ने कहा कि ये मामला पूरी तरह से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अधिकार क्षेत्र में आता है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि ASI ही तय कर सकती है कि इसके पुनर्निर्माण की अनुमति दी जाए या नहीं। तब तक, यदि आप शैव धर्म के विरोधी नहीं हैं तो वहां जाकर पूजा कर सकते हैं। वहां काफी बड़ा शिवलिंग है, जो कि खजुराहो में सबसे बड़ा है।
हरियाणा के रहने वाले याचिकाकर्ता राकेश दलाल ने 13 जून को याचिका दायर की थी, जिसमें खंडित हुई इस मूर्ति को बदलकर नई मूर्ति स्थापित करने की मांग की गई थी। वह पांच साल पहले खजुराहो आए थे। यहां खंडित मूर्ति देखकर मंदिर के बाहर अनशन भी किया था।
यह भी पढ़ें- Bhopal में नाबालिग से दुष्कर्म और तस्करी का मामला, दो फरार आरोपियों की नए सिरे से होगी तलाश
खजुराहो के जवारी मंदिर के गर्भगृह में स्थापित भगवान विष्णु की सात फीट ऊंची मूर्ति का सिर नहीं है। यह वामन मंदिर खजुराहो के प्रमुख मंदिरों में से एक है। मंदिर का निर्माण लगभग 1050-1075 ईस्वी में चंदेल राजाओं ने कराया था। यहां भगवान विष्णु के सभी अवतारों को दिखाया गया है। मूर्ति खंडित होने की वजह से इसकी पूजा नहीं की जाती है। यह मंदिर अपनी अनोखी बनावट के लिए जाना जाता है।