राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल। पदोन्नति नियम का मामला नौ साल बाद भी सुलझ नहीं पाया है। नए नियम भी बनाए लेकिन उसमें भी वो प्रविधान नहीं किया जो समस्या का स्थायी समाधान कर देता। अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के अधिकारी-कर्मचारी 36 प्रतिशत पदों पर और शेष 64 प्रतिशत अनारिक्षत अपने संवर्ग में रहेंगे।
कोई किसी की श्रेणी में नहीं जाएगा लेकिन अधिकारियों को यह साधारण सी बात समझ नहीं आई और नियम फिर उलझ गए। अधिकारियों ने अपने लिए अलग नियम रखे और कर्मचारियों के लिए अलग, इसके कारण ही परेशानी खड़ी हुई। यह कहना है कि मंत्रालय सेवा अधिकारी-कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक का।
उन्होंने कहा कि नए नियम में यदि यह प्रविधान कर दिया जाता कि 2016 से पदोन्नतियां शुरू की जाएंगी और पिछले त्रुटिपूर्ण नियमों के कारण जिन संवर्गों में निर्धारित 36 प्रतिशत से अधिक आरक्षण हो गया है, उनमें आरक्षण का प्रतिशत कम आने तक पदोन्नतियां रुकी रहेंगी, तो विवाद शांत हो जाता है।
दोनों ही वर्ग इससे सहमत हो सकते थे, परंतु दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ या फिर नहीं किया गया। संघ ने कई बार समाधान बताए पर ध्यान नहीं दिया गया। सबसे सरल हल राज्य प्रशासनिक सेवा की तरह समयमान वेतनमान के साथ उच्च पदनाम देना था। कई संवर्गों में यह व्यवस्था लागू भी है।