
नईदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल: मध्यप्रदेश में लागू किए गए पदोन्नति नियम 2025 (MP Promotion Rules 2025) को लेकर सामान्य, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक अधिकारी-कर्मचारी संस्था (SAPAKS) ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। सपाक्स का कहना है कि सरकार ने गलत नियम से पदोन्नत हुए कर्मचारियों को पदावनत नहीं करने का जो निर्णय लिया है, उसका विरोध किया जाएगा।
12 नवंबर को हाईकोर्ट जबलपुर में सपाक्स की ओर से सरकार के नए नियमों को लेकर अपना पक्ष रखा जाएगा। संगठन का मुख्य तर्क है कि वर्ष 2002 के नियमों को सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया था, इसलिए उन्हीं नियमों के आधार पर अब पदोन्नति देना न्यायसंगत नहीं है।
सपाक्स के संस्थापक अध्यक्ष केपीएस तोमर ने कहा कि सरकार ने नए नियम में सामान्य वर्ग के हितों की अनदेखी की है। पुराने नियमों की तरह ही नए नियम में भी वे प्रावधान दोहराए गए हैं, जिन्हें पहले ही अदालत ने खारिज कर दिया था। इससे पहले हाई कोर्ट ने उन कर्मचारियों को पदावनत करने के निर्देश दिए थे, जो गलत नियमों के तहत पदोन्नत हुए थे।
हालांकि, सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जहां से यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश जारी हुए। इसका अर्थ हुआ कि फिलहाल किसी को न पदोन्नत किया जा सकता है और न ही पदावनत। अब सरकार ने उस लंबित याचिका को वापस लेने के बजाय नए पदोन्नति नियम 2025 लागू कर दिए हैं, जिसमें न तो क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान है और न ही पुराने पदोन्नत कर्मचारियों के लिए पदावनति का।
सपाक्स का कहना है कि सरकार द्वारा प्रतिनिधित्व को लेकर जो डेटा प्रस्तुत किया गया है, वह विसंगतिपूर्ण है। आरक्षित वर्ग के वे अधिकारी जो अनारक्षित श्रेणी में पदोन्नति पाए हैं, उन्हें सामान्य वर्ग में गिना गया है, जबकि उनकी नियुक्ति आरक्षित श्रेणी में हुई थी। इससे संवर्ग की वास्तविक गणना प्रभावित हुई है।
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मुख्य सचिव अनुराग जैन ने सभी विभागों को पदोन्नति की तैयारी रखने के निर्देश दिए हैं। संभावना जताई जा रही है कि यदि नवंबर में मामला सुलझ जाता है, तो इस वर्ष के भीतर ही पदोन्नतियां कर दी जाएंगी।
सपाक्स ने स्पष्ट किया है कि वह कोर्ट में अपने पक्ष को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेशों और दिशा-निर्देशों की रोशनी में मजबूती से रखेगा। संगठन का कहना है कि न्याय और समान अवसर के सिद्धांतों की रक्षा के लिए यह संघर्ष जारी रहेगा।