
नवदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल: राजधानी और आसपास के जिलों में लगे मोबााइल टावरों से बेस बैंड चुराने वाले एक शातिर गिरोह का मिसरोद पुलिस ने खुलासा किया है। गिरोह का सरगना एक टेलीकाम इंजीनियर है, जो कि स्वयं एयरटेल कंपनी में लंबे समय तक नौकरी करता रहा।
आरोपी ने करीब छह महीने पहले उसने नौकरी छोड़ दी थी। साथ ही अपने कुछ दोस्तों की नौकरी भी छुड़वाई और फिर मोबाइल टावर से चोरी के लिए एक गैंग बनाई। बतौर टेलीकाम इंजीनियर सरगना को टावर की हर तकनीकी जानकारी थी। उसने अपनी गैंग के सदस्यों को ट्रेन किया और फिर ऐसे टावरों को निशाना बनाया, जो रहवासी क्षेत्र से कुछ दूर थे और सुरक्षा की कमी दिखाई दी।
आरोपी टावर के नीचे लगी बेस बैंड डिवाइस को चुराते थे, यही टावर का हार्ट होता, जिसके बंद होने पर उस टावर से जुड़े सभी नेटवर्क टूट जाते हैं। आरोपियों ने पिछले पांच महीने में भोपाल के आसपास के जिलों में कई वारदातें कीं। पिछले सप्ताह भी उन्होंने मिसरोद क्षेत्र में लगे टावर से जैसे ही डिवाइस चोरी की तो उसके टेक्निशियन को सूचना मिली। उसने मिसरोद थाने में शिकायत की।
हालांकि तब तक आरोपित भाग चुके थे, लेकिन पुलिस ने तकनीकी सहायता से पीछा कर उन्हें पकड़ा। पुलिस ने मुख्य सरगना समेत पांच आरोपितों को गिरफ्तार कर उनके कब्जे से करीब 50 लाख रुपये कीमत का सामान जब्त किया है, जबकि एक आरोपित फरार है।
थाना प्रभारी रतनसिंह परिहार ने बताया कि 32 वर्षीय प्रदीप यादव मूलत: ग्राम थाना मंगरोल, सेंवडा, जिला दतिया का रहने वाला है। वह बीटेक इंजीनियर है और टेलीकाम कंपनी में नौकरी करता था। इसी वर्ष उसने नौकरी छोड़कर चोर गिरोह बनाना शुरू किया था। इसमें उसने अपने ही क्षेत्र के रहने वाले शैलू त्यागी, विनीत त्यागी, रामकुमार शर्मा और आकाश अहिरवार को शामिल किया था।
शैलू, विनीत और रामकुमार भोपाल के शाहपुरा क्षेत्र में रहते हुए दिलीप बिल्डकॉन कंपनी में नौकरी करते थे। प्रदीप दोस्त आकाश के साथ भोपाल आया और शाहपुरा में रहने वाले तीनों दोस्तों के साथ रहने लगा। वे दिन में भोपाल, रायसेन, विदिशा और राजगढ़ में रैकी करते थे और उन टावरों को चिन्हित करते, जहां सुरक्षाकर्मी नदारद रहते थे।
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बदमाश रात में जाते और बेस बैंड चुराकर चले जाते। आरोपियों ने पूछताछ में बताया है कि चोरी के बाद वे नईम नामक युवक को बेस बैंड बेचने के लिए देते थे। आरोपी रायसेन, विदिशा और राजगढ़ में अब तक छह टावरों से चोरी की वारदात कर चुके थे। जबकि भोपाल में सातवीं चोरी की थी। 11 दिसंबर की रात उन्होंने मिसरोद में लगे टावर से बेसबैंड चुराया तो टावर के तकनीशियन प्रेमसिंह पटेल ने मिसरोद थाने में शिकायत की थी।
मोबाइल टावर में लगा बेसबैंड यूनिट नेटवर्क का सबसे अहम हिस्सा होता है। यही यूनिट मोबाइल से आने-जाने वाले सिग्नल को प्रोसेस करती है। काल, इंटरनेट डेटा और मैसेज पहले रेडियो यूनिट से होकर बेसबैंड तक पहुंचते हैं, जहां सिग्नल को डिजिटल रूप में डिकोड कर नेटवर्क से जोड़ा जाता है। 4जी और 5जी में बेसबैंड की भूमिका और भी बढ़ जाती है, क्योंकि यह हाई-स्पीड डेटा को मैनेज करता है। एक बेसबैंड यूनिट की कीमत क्षमता और तकनीक के अनुसार करीब 5 लाख से 20 लाख रुपये या उससे अधिक तक हो सकती है।