
डिजिटल डेस्क। दीपावली की खुशियों के बीच सोशल मीडिया पर एक फन ट्रेंड ने खतरनाक रूप धारण कर लिया है। हम बात कर रहे हैं देसी जुगाड़ से बनी कार्बाइड गन की, जिसकी वजह से मध्य प्रदेश सहित पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ है। आम बोलचाल में लोग इसे 'कार्बाइड बम' या 'कार्बाइड क्रैकर' भी कहते हैं। इसकी वजह से देश के कई राज्यों में बच्चों की आंखों में गंभीर चोटें आई हैं।
यह देसी गन प्लास्टिक पाइप, गैस लाइटर, और कैल्शियम कार्बाइड से मिलकर बनाई जाती है। पाइप में भरा कैल्शियम कार्बाइड जब पानी से मिलता है तो एसिटिलीन गैस पैदा होती है। इसमें एक छोटी सी चिंगारी मिलते ही तेज धमाका होता है।
विस्फोट होने और पाइप टूटने पर निकलने वाले प्लास्टिक के छोटे-छोटे जैसे छर्रे, सीधे शरीर में खासकर आंखों में घुसकर गंभीर चोटें पहुंचाते हैं। इससे चेहरे, आंखों और कॉर्निया को गंभीर क्षति पहुंचती है, साथ ही यह दिमाग और नर्वस सिस्टम के लिए भी घातक है। कई मामलों में लोगों की आंख की पुतली फटने तक की स्थिति बन गई, जिसकी वजह से उन्हें तुरंत सर्जरी करानी पड़ी।
एम्स भोपाल की नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. भावना शर्मा ने बताया कि एम्स भोपाल में इसके कई मामले आए हैं। इसमें से आठ मरीजों का एम्नियोटिक झिल्ली प्रत्यारोपण किया जा रहा है, जिससे आंख की क्षतिग्रस्त सतह को ठीक किया जा सके। अभी तक आठ मरीजों की सर्जरी हो चुकी है और बाकी का इलाज जारी है। समय पर इलाज से कई मामलों में रोशनी बचाई जा सकती है।
इस खतरनाक ट्रेंड के लिए मुख्य रूप से इंस्टाग्राम रील्स और यूट्यूब की वीडियो जिम्मेदार है। वीडियो देखकर ही बच्चों के बीच इसको बनाने और चलाने की होड़ देखने को मिली है। इससे वह ना सिर्फ अपनी बल्कि दूसरों की जिंदगी को भी खतरे में डाल रहे हैं।
एम्स भोपाल की नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. भावना शर्मा ने बताया कि कार्बाइड पटाखों में अत्यधिक रासायनिक तत्व होते हैं जो आंखों की सतह को जला देते हैं। ऐसे में तुरंत पानी से आंख धोनी चाहिए और एक आंख बंद करके यह जांचें कि रोशनी दिखाई दे रही है या नहीं। अगर जलन, दर्द या धुंधलापन महसूस हो तो देर न करें और तुरंत नजदीकी नेत्र अस्पताल जाएं। पटाखे फोड़ते समय सावधानी बरतें, कार्बाइड जैसे रासायनिक पटाखों से बचें और आंखों पर सुरक्षात्मक चश्मे का इस्तेमाल करें।
देसी जुगाड़ से बनी कार्बाइड गन इस समय मध्य प्रदेश में जमकर कहर बरपा रही है। भोपाल, विदिशा, ग्वालियर और इंदौर में अब तक 200 से अधिक बच्चे घायल होकर अस्पताल पहुंच चुके हैं। इस दौरान कई की आंखों की रोशनी स्थायी रूप से जा चुकी है, जबकि कुछ के चेहरे भी झुलसे हैं।