नई दुनिया, जुन्नारदेव (Junnardev News)। माता हिंगलाज का देश में एकमात्र मंदिर छिंदवाड़ा जिले में है। इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक है। मान्यता है कि मां के दरबार में लगाई गई हर अर्जी पूरी होती है। मां हिंगलाज का दूसरा मंदिर पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में हैं, जिसके प्रति हिन्दुओं के अलावा मुस्लिमों में भी अटूट आस्था है। भारत में प्राचीन हिंगलाज मंदिर छिंदवाड़ा जिला मुख्यालय से करीब 35 किमी दूर उमरेठ थाना क्षेत्र के अम्बाड़ा में है।
कहते हैं कि 110 वर्ष पूर्व 1907 में कोलमाइन के अंग्रेज मालिक ने अपने कर्मचारियों को मूर्ति हटाने का काम सौंपा था, लेकिन मजदूरों की तमाम कोशिशों के बावजूद मूर्ती हिली तक नहीं थी और जब मालिक घर जाकर सो गया। उसे सपने में हिंगलाज माता आईं और मूर्ति न हटाने की चेतावनी दी थी।
अगली सुबह अंग्रेज ने यह बात मजदूरों को बताई और फिर से मूर्ति हटाने के आदेश दे कर पत्नी के साथ खदान में अंदर घूमने चला गया था।
मजदूर मूर्ति हटाने का प्रयास करने लगे और दूसरी ओर जैसे ही अंग्रेज खदान के अंदर गया, खदान में पत्थर धंसका और अंग्रेज खदान में जिंदा दफन हो गया। कहा जाता है कि उस रात वहां तेज विस्फोट हुआ और आग की लपटें निकलीं।
नवरात्रि में मंदिर परिसर में जहां सुरक्षा के लिए पुलिस बल तैनात रहने के साथ सीसीटीवी लगे हैं। परिसर में बच्चों के मनोरंजन के लिए झूला-चकरी व अन्य खिलौने हैं। परिसर में ही पेजलय की बेहतर व्यवस्था है। प्रवेश द्वार पर करीब एक फीट गहरा और तीन फीट लम्बा व 15 फीट से अधिक चौड़ा सीमेंटेड गड्ढा बनाया गया, जिसमें अनवरत पानी बहता है, उसमें ही श्रद्धालुओं के पैर धुल जाते हैं और फिर वे मंदिर में प्रवेश कर पूजा-अर्चना करते हैं।
नव वर्ष और नवरात्रि के दौरान मंदिर परिसर संगीतमय भजन गूंजते रहते हैं। यहां धार्मिक कार्यक्रम होते रहते हैं, जिनमें प्रसिद्ध कलाकारों ने देवी भजनों, गीतों की प्रस्तुति देते हैं। भजन मंडलिया जगराता करती हैं। मंदिर परिसर वृहद व व्यवस्थित होने के कारण कई श्रद्धालु परिवार के साथ पिकनिक मनाते नजर आते हैं।
यहां चैत्र और क्वांर नवरात्रि महोत्सव के दौरान मंदिर में करीब एक हजार से अधिक ज्योति कलश स्थापित किए जाते हैं। नौ दिनों तक भक्तों का माता के दर्शन करने तांता लगा रहता है। मंदिर के समीप ही ग्रामीणों की आवाजाही को देखते हुए घरेलू सामग्री व मनोरंजन की दुकानें लगती हैं।
मंदिर समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि राजस्थान के काठियावाड़ इलाके में हिंगलाज देवी की प्रतिमा स्वयं प्रकट हुई थी। हिंगलाज माता को काठियावाड़ के राजा की कुलदेवी माना जाता था। प्राचीन काल में राजा के वंशजों को जीविकोपार्जन के लिए छिंदवाड़ा आना पड़ा था।
तब वे अपने साथ हिंगलाज माता की प्रतिमा भी ले आए और छिंदवाड़ा में एक कोल माइन के पास इसे स्थापित किया था। तभी से यहां हिंगलाजा देवी पूजी जाने लगीं।हिंगलाज माता की मूर्ति अपने आप उठकर जंगलों में आकर विराजमान हो गईं।
कुछ समय बाद लोगों को जंगलों में इमली के पेड़ के नीचे हिंगलाज माता की मूर्ति मिली और फिर यहां उनका मंदिर बनाया गया। अब यह मंदिर छिंदवाड़ा जिले के गुड़ी-अम्बाड़ा के पास स्थित है।