
डिजिटल डेस्क। एमपी के दमोह में इस समय एक ऐसा टूर्नामेंट चल रहा है, जिसने सभी का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। दरअसल, यह सिर्फ क्रिकेट मैच की ही बात नहीं है, बल्कि तमाम गरीब और अनाथ बेटियों की नई जिंदगी का टूर्नामेंट हो रहा है। इसको ‘विवाह क्रिकेट टूर्नामेंट’ नाम दिया गया है, जिसमें फाइनल मैच में बराती आएंगे और दो बेटियों की शादी कराई जाएगी।
मकर संक्रांति के बाद इस टूर्नामेंट का रोमांचक पहलू देखने को मिलेगा, क्योंकि उस समय फाइनल खेला जाना है। इसमें जीत और हार से भी ज्यादा अहम यह होगा कि कैसे समाज की सामूहिक मदद से बेटियां अपनी जीवन की नई शुरुआत करेंगी।
सोच और समाज बदलने की कोशिश
इस पूरे टूर्नामेंट के पीछे एक खास मकसद है और इस मकसद के पीछे जिनका हाथ है, वह हैं कुम्हारी गांव के रवि चौहान। वे बताते हैं कि, "मेरी पहली संतान बेटी थी और मैंने दूसरी संतान भी बेटी ही चाही, मेरे लिए बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं है।" वे कहते हैं कि इसी सोच के चलते उन्होंने हर साल एक जरूरतमंद बेटी के विवाह का संकल्प लिया।
रवि की यह सोच सिर्फ उन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अब इसमें गांव और आसपास के लोग भी अपनी भागीदारी कर रहे हैं। दोस्त, परिवार और समाज के लोग कंधे से कंधा मिलाकर इस मुहिम को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं।
20 दिसंबर से शुरू हुआ टूर्नामेंट
विवाह कप के तीसरे सीजन की शुरुआत 20 दिसंबर से हो चुकी है। इस बार टूर्नामेंट में जिले की कुल 24 टीमें भाग ले रही हैं। विजेता टीम को 41 हजार रुपये और उपविजेता को 11 हजार 100 रुपये का पुरस्कार दिया जाएगा। हालांकि, इस प्रतियोगिता का सबसे बड़ा इनाम वह राशि है, जो बेटियों की शादी में खर्च की जाती है, बिना दहेज, पूरे सम्मान और सहयोग के साथ।
दो सीजन, दो बेटियों की नई जिंदगी
इस पहल की शुरुआत साल 2023 में हुई थी। पहले सीजन में कुम्हारी गांव की बेटी रानी आदिवासी का विवाह फाइनल मैच के दिन कराया गया। दहेज की जगह समाजसेवियों ने गृहस्थी का जरूरी सामान भेंट किया।वहीं 2024 में दूसरे सीजन के दौरान बबीता आदिवासी का विवाह संजय नगर गैसाबाद निवासी युवक से संपन्न हुआ। इस आयोजन को समाज का भरपूर समर्थन मिला और लोगों ने इसे सराहनीय कदम बताया।
इस साल फिर दो बेटियों के हाथ होंगे पीले
आयोजक रवि चौहान बताते हैं कि 2025 में भी दो जरूरतमंद बेटियों की शादी की तैयारी की जा रही है। इनमें एक बेटी दलित परिवार से है और दूसरी बेटी आदिवासी परिवार से है। दोनों के विवाह का पूरा खर्च टूर्नामेंट से जुटी राशि और समाजसेवियों के सहयोग से किया जाएगा।
कैसे चुना जाता है परिवार
रवि चौहान बताते हैं कि उनकी टीम सबसे पहले आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की पहचान करती है। टीम के सदस्य खुद उनके घर जाकर हालात देखते हैं। चयन के बाद विवाह के लिए जरूरी सामान पुरस्कार के रूप में दिया जाता है। फाइनल मैच के दिन मैदान पर जयमाला की रस्म निभाई जाती है, जबकि बाकी विवाह संस्कार बाद में परिवार के घर पर पूरे किए जाते हैं।
खेल से समाज तक का संदेश
रवि के पिता हटा में सरकारी शिक्षक हैं। परिवार की अपनी पैतृक जमीन है और बड़े भाई इंदौर में मेडिकल स्टोर चलाते हैं। रवि का कहना है कि वे चाहते हैं कि जितना संभव हो सके, गरीब और अनाथ बेटियों की मदद करते रहें।