कुलदीप सक्सेना, दतिया। मां पीतांबरा की नगरी दतिया देश में एक अलग पहचान रखती है। राजसत्ता की अधिष्ठात्री देवी मां बगुलामुखी यहां स्थित पीतांबरा पीठ में विराजमान हैं। देश विदेश के साधक यहां जप तप साधना के लिए डेरा जमाए रहते हैं। तंत्र मंत्र के लिए सिद्धपीठ पीतांबरा मंदिर पर पूरे बारह माह ही श्रद्धालुओं के आने का क्रम रहता है। धार्मिक मान्यता है कि पीतांबरा माई के दर्शन मात्र से ही शत्रु और कष्टों का विनाश हो जाता है। इसके अलावा कई अलग-अलग धार्मिक मान्यताएं भी इस शक्तिपीठ से जुड़ी हुई हैं।
यहां महाभारत कालीन वनखंडेश्वर महादेव और दस महाविद्याओं में से एक माई धूमावती भी विराजित हैं। मां का यह रूप वैध्वय होने के कारण सुहागिन महिलाओं को इसके दर्शन निषिद्ध हैं। हर शनिवार यहां धूमावती माई के दर्शनों के लिए देश के कोने-कोने से काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। मां को नमकीन वस्तुओं का भोग अर्पित किया जाता है।
श्रद्घा, आस्था और विश्वास लेकर देश के विभिन्न राज्यों और विदेश से दर्शनार्थी दतिया नगर में विराजित मां पीतांबरा मंदिर पर पहुंचते हैं। वर्ष में पड़ने वाली चार नवरात्रि में तो यहां पर भक्तों का तांता लगा रहता है। मां पीतांबरा मूर्ति की स्थापना वर्ष 1935 में स्वामी जी महाराज ने की थी। इसी शक्ति पीठ में धूमावती माई की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा वर्ष 1978 में की गई थी।
दस महाविद्याओं में से दो पीतांबरा माई और धूमावती माई के इस पीठ में एक साथ विराजमान होने से यहां की मान्यता और सिद्धता काफी प्रसिद्ध है। मां पीतांबरा को शत्रुहंता और राजसत्ता की देवी माना जाता है। मान्यता है कि इस शक्ति पीठ पर जो भी दर्शन करने आता है उसके शत्रु, दुख और कष्टों का निवारण माई के दर्शन पूजन मात्र से हो जाता है। यही कारण है कि यहां राजनेता, फिल्म अभिनेता-अभिनेत्रियां और उद्योगपति सहित देशभर के गणमान्य लोग दर्शन के लिए वर्षभर आते रहते हैं।
दतिया पर्यटन और आध्यात्मिक केंद्र के रूप में भी जाना जाता है। यहां हर गली में भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर होने के कारण इस नगरी को लघु वृंदावन के नाम से भी ख्याति प्राप्त है। शहर से तीन किमी की दूरी पर ही पंचमकवि की टोरिया है। यहां तारापीठ और भगवान भैरव का स्थान है। दतिया से आठ से दस किमी की दूरी पर प्रसिद्ध जैन सिद्धक्षेत्र सोनागिर है। यहां पहाड़ी पर जैन तीर्थंकरों के मंदिर बने हुए हैं।
वहीं पास ही बड़ौनी में भगवान गुप्तेश्वर महादेव का गुफा में काफी प्राचीन मंदिर है। 15 किलोमीटर दूर उनाव में सूर्य मंदिर है, जिसे उनाव बालाजी के नाम से जाना जाता है। यहां पहुंज नदी में स्नान करने के बाद सूर्य यंत्र का जलाभिषेक व दर्शन करने से चर्म रोग से मुक्ति मिलने की मान्यता है। श्रद्घालुजन द्वारा यहां देसी घी चढ़ाने की परंपरा भी है। दतिया से 65 किमी दूर ब्रह्माजी के मानस पुत्रों की तपस्थली सनकुआं धाम है। जिसे सभी तीर्थों के भांजे के रूप में मान्यता प्राप्त है। पर्यटन की दृष्टि से दतिया में वीरसिंह पैलेस, गुजर्रा का शिलालेख, राजसी छतरियां आदि भी आकर्षक हैं।
दतिया के पीतांबरा पीठ पर वर्षभर आयोजन होते हैं। इनमें वर्ष में आने वाली चारों नवरात्रि के दौरान दुर्गा शत चंडी जाप के साथ राष्ट्र रक्षार्थ अनुष्ठान प्रमुख हैं। इसके बारे में पीतांबरा मंदिर पीठ के प्रशासक बीपी पाराशर बताते हैं कि अनुष्ठान के दौरान शतचंडी पाठ आदि किए जाते हैं। पीठ परिसर में वह यज्ञशाला भी बनी है।
जहां भारत चीन युद्ध के समय स्वामी जी महाराज द्वारा देशभर के विद्वान पंडितों के माध्यम से राष्ट्र रक्षार्थ अनुष्ठान कराया गया था। मां पीतांबरा को शत्रुहंता भी माना जाता है। इसीके चलते वर्ष 1962 में बैद्यनाथ कंपनी के चेयरमैन पंडित रामनारायण शर्मा के सहयोग से भारत-चीन युद्ध के दौरान यहां पर राष्ट्र रक्षा अनुष्ठान 76 पंडितों द्वारा करीब 34 दिन किया गया था।
बताया जाता है कि जैसे ही पीतांबरा पीठ मंदिर में यज्ञ प्रारंभ हुआ वैसे ही चीन की सेना ने पीछे हटना शुरू कर दिया था। वर्तमान में इस शक्ति पीठ पर राजसत्ता पाने के इच्छुक नेता, फिल्म अभिनेता सहित बड़े उद्योगपति व न्यायपालिका के बड़े पदों पर आसीन अधिकारी यहां पहुंचकर शतचंडी अनुष्ठान कराते हैं। इसके अलावा पीतांबरा पीठ मंदिर ट्रस्ट द्वारा परशुराम जयंती, भैरव जयंती, गीता जयंती, स्वामी महाराज का आगम और निर्वाण पर्व भी यहां मनाया जाता है, इसमें धार्मिक आयोजन किए जाते हैं।
इसके अलावा गुरु पूर्णिमा पर अनेक कार्यक्रम होते हैं और इसमें भाग लेने वाले देश विदेश से यहां पर लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। पीतांबरा पीठ पर बसंत पंचमी के अवसर पर संगीत समारोह का आयोजन होता है। जिसमें देश के ख्यातनाम शास्त्रीय संगीतकार व गायक अपनी प्रस्तुतियां मां पीतांबरा और स्वामी महाराज को समर्पित करते हैं।
पीतांबरा शक्ति पीठ मंदिर परिसर में महाभारत कालीन वनखंडेश्वर महादेव का प्राचीन शिवलिंग भी स्थापित है। वनखंडेश्वर महादेव शिवलिंग के कारण ही पीतांबरा पीठ का पुराना नाम वनखंडी था। पूर्व में पीतांबरा शक्ति पीठ के आसपास सुनसान स्थान हुआ करता था। यहां पर श्मशान भूमि पर विराजित वनखंडेश्वर शिवलिंग के बारे में किवदंती है कि पांडवों के वनवास के दौरान यहां पर घना जंगल हुआ करता था।
इसके बाद जंगल को काटकर यहां पर शिवलिंग स्थापित कर पांडवों ने तपस्या की। वनों को खंडित कर बनाए गए इस शिव मंदिर के कारण इसका नाम वनखंडेश्वर महादेव पड़ गया। एक मान्यता यह भी है कि महाभारत कालीन योद्धा और गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने भी यही पर इसी शिवलिंग के सम्मुख बैठकर आराधना की थी। इन मान्यताओं के कारण ही इस शिवलिंग को पांच हजार वर्ष पुराना माना जाता है।
पीतांबरा माई मंदिर के ठीक सामने हरिद्रा सरोवर बना है। यहां भगवान विष्णु के कच्छप अवतार को दर्शाया गया हैं इनकी पीठ पर बना एक माई का विशेष श्रीयंत्र भी खास आकृति का बनाया गया है। सरोवर के चारों ओर मनियाें की मूर्तियां स्थापित हैं। इस सरोवर की जप तप साधना में वैदिक मान्यता है। हालांकि यह आम श्रद्धालुओं के लिए कभी कभी ही खोला जाता है। इस सरोवर के किनारे ही जपस्थल बना हुआ है। यहां दीक्षा प्राप्त साधक पहुंचकर जप साधना करते हैं। पीतांबरा शक्ति पीठ परिसर लगभग आठ एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहां पर संस्कृत महाविद्यालय, संगीत महाविद्यालय तथा आयुर्वेदिक औषधालय का संचालन भी किया जाता है।
पीतांबरा शक्ति पीठ पर दतिया पहुंचने के लिए कई तरह के साधन उपलब्ध हैं। यह ग्वालियर से 75 किलोमीटर दूर और झांसी से 25 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। जहां रेल मार्ग और सड़क मार्ग का रास्ता सुलभ है। इसके अलावा यहां पर एक हवाई पट्टी (एयर स्ट्रीप) भी है, जिसे अब हवाई अड्डा का स्वरूप दिया जा रहा है। जिसके बाद यहां से विमानसेवा भी प्रारंभ हो जाएंगी।
अभी फिलहाल यहां पर निजी व सरकारी छोटे विमान की आवाजाही होती रहती है। अनेक वीआइपी दर्शन करने के लिए निजी विमान का भी उपयोग करते हैं। ग्वालियर एयरपोर्ट पर आने के बाद सड़क मार्ग से दतिया पीतांबरा शक्ति पीठ पहुंचा जा सकता है। दतिया नेशनल हाईवे 75 पर स्थित है। इसलिए सड़क मार्ग से पहुंचना भी काफी आसान है।
दतिया में ठहरने के लिए है होटल व अन्य व्यवस्था
पीतांबरा मंदिर में दर्शन के लिए दतिया पहुंचने वाले श्रद्घालुओं के रहने, ठहरने व खाने-पीने की व्यवस्था भी काफी बेहतर है। पीतांबरा शक्ति पीठ ट्रस्ट द्वारा स्थायी दीक्षार्थियों के लिए निशुल्क रहने तथा खाने पीने की व्यवस्था की जाती है। जबकि अन्य श्रद्धालुओं के लिए रुकने के लिए यहां पर धर्मशालाएं, होटल और सर्किट हाउस व डाक बंगले भी हैं, जो किफायती किराये पर उपलब्ध हैं।
इसके अलावा खाने पीने के लिए कई होटल और रेस्टोरेंट भी हैं। हालांकि मंदिर सुबह पांच बजे खुल जाता है और रात्रि नौ बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है। ऐसे में श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए पर्याप्त समय रहता हैं जिससे एक दिन का समय लेकर आने वालों को ठहरने की व्यवस्था भी नहीं करनी पड़ती है। शनिवार के दिन यहां भक्तों की सर्वाधिक भीड़ रहती है।
मंदिर खुलने का समय- सुबह 5:00 बजे
प्रभात आरती- सुबह : 7.00 बजे
विश्राम - दोपहर 12 बजे से 2.00 बजे
सांध्य आरती- सांय 7.00 बजे
श्रृंगार आरती- रात्रि 08.30 बजे
बड़ी आरती- रात्रि 09.00 बजे
धूमावती माई की आरती
आरती- सुबह : 8.00 बजे
आरती शाम : 8.00 बजे। प्रतिदिन।
सुबह 7.15 बजे से 9.00 बजे तक।
शाम 5.00 बजे से रात्रि 8.00 बजे।