राजेंद्रपाल सिंह सेंगर, नईदुनिया छतरपुरा (बागली) : नेमप्लेट पर सरदार तीरथ सिंह रीन लेफ्टीनेंट टैंक कमांडर स्वतंत्रता सग्राम सेनानी फौजी भवन जवाहर मार्ग बागली लिखा है, जो बागली में पापाजी के रूप में पहचाने जाते थे। स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के ड्राइवर के रूप में 15 दिन रहे हों या देश की आजादी के लिये तैयार हो रही आजाद हिंद का हिस्सा, देश की आजादी की लड़ाई में सर्वस्व न्यौछावर करने वाले तीरथ सिंह ने आजाद भारत में गुमनामी जीवन व्यतीत किया।
स्वाभिमानी तीरथ सिंह ने कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया। अपने संघर्ष में पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के लिए ट्रक ड्रायवरी की, तंगहाली में इलाज के अभाव में एक पुत्र की मौत हो गई, तो एक पुत्र की आखों की रोशनी चली गई। 1973 में आजादी के 25 वर्ष पूर्ण होने पर उत्सव मनाया गया जिसमें बागली के हायर सेकेंडरी स्कूल में एक स्मारक में तीरथ सिंह के नाम का उल्लेख किया जबकि पेंशन बड़ी परेशानी के बाद 1985 में प्रारंभ हुई। 12 अगस्त 1992 को बागली में उनकी मृत्यु हो गई। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए जो राष्ट्रीय सम्मान उनको मिलना चाहिए था, जैसे गार्ड ऑफ ऑनर आदि नहीं मिल पाया।
तीरथ सिंह का जन्म 1917 में तत्कालीन कश्मीर के हजारा जिले के हवेलिया के जावा नामक गांव में हुआ था। 20 वर्ष की उम्र में 8 मार्च 1937 में वो सेना में भर्ती ही गए। जावा से हवेलिया, रावलपिंडी, चकलाला, पंजाब, बेलगाम बैंगलोर में ट्रेनिंग हुई जिसके बाद सिकंदराबाद, सूडान, लीबिया देशों का लगातार सफर किया।
जापान में तीरथ सिंह की मुलाकात सुभाषचन्द्र बोस से हुई। जहां नेताजी तीरथ सिंह से प्रभावित हुए उन्होंने उनकी जीप का ड्रायवर रखा किन्तु 15 दिन तक गाड़ी चलाने के बाद जब अंग्रेज सरकार ने नेताजी को नजरबंद किया तो फिर तीरथ सिंह आजाद हिंद फौज का हिस्सा बन गए। बाद में मुंबई में उन्हें गिरफ्तार कर लाल किले में ले जाकर कैद कर दिया गया।
7 मार्च 1946 को तीरथ सिंह जेल रिहा हुए, लेकिन मुश्किलें कम नहीं हुई। पुश्तैनी गांव बंटवारे की आग से जल रहा था। परिवार जावा से रातों रात भागकर अनजाने ठिकाने पर पहुंच गए। तीरथ सिंह के बड़े भाई प्रतापसिंह मप्र के देवास जिले के बागली में लकड़ी की ठेकेदारी करने लगे। तीरथ सिंह बागली में बसे और यहीं हरपाल कौर से विवाह किया।
परिवार के पालन-पोषण के लिये ट्रक ड्रायवरी की। उनके तीन पुत्र एक पुत्री थी किन्तु गरीबी के चलते एक पुत्र का आकस्मिक निधन हो गया। जबकि एक अन्य पुत्र की दुर्घटना में आंखों की रोशनी चली गई। लड़ाई के समय कान में चोट लगने से और दूसरे कान से भी कम सुनाई देने से ड्रायवरी से भी छुट्टी हो गई। जैसे-तैसे तंगहाली में जीवन निकला।
स्वतंत्रता सेनानियों को मिलने वाली पेंशन के लिये सरकारी दफ्तर में चक्कर लगाने के बाद बड़ी मशक्कत से पेंशन चालू हुई। 12 अगस्त 1992 को बागली में उनका निधन हो गया। उनके तीनों पुत्रों की मौत आकस्मिक दुर्घटनाओं में हुई, जबकि पत्नी एक वर्ष पूर्व शांत हुई हैं।
बागली के सरकारी स्कूल में पदस्थ पदमा पंचोली ने तीरथ सिंह रीन के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने की जानकारी होने पर उनसे मिलकर उनके जीवन व स्वतंत्रता संग्राम में उनके संघर्ष को पन्नों में दर्ज करके किताब लिखने का प्रयास किया था। किन्तु पब्लिशर द्वारा उस समय 40 हजार का खर्च बताने से किताब छप नहीं पाई। वह आज भी पांडुलिपि में उनके पास है।
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रीन के भतीजे इंद्रजीत सिंह रीन ने बताया कि जब आजाद हिंद फौज के संस्थापक नेताजी सुभाषचंद्र बोस की गुमनामी और उनके जीवित होने की खबरें आने लगी थीं तब हमने हमारे चाचा से नेताजी के बारे में पूछा था कि क्या वे अभी जीवित हैं। तो उन्होंने कहा था नेताजी जैसी विराट शख्सियत के स्वामी गुमनामी के अंधेरे में रह ही नहीं सकते थे। यदि वे जीवित होते तो भारत आजादी के बाद से ही सिरमौर बनने की ओर तेजी से कदम बढ़ाता। आजादी के बाद के भारत के लिए उनके पास कई योजनाएं थीं।