सतवास (देवास), Sawan 2021। हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र हैं प्राचीन धर्मेश्वर महादेव मंदिर। वर्षभर भक्तों का तांता लगा रहता है। श्रावण माह, शिवरात्रि, गुरु पूर्णिमा, रक्षाबंधन पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। सुरम्य प्राकृतिक वादियों और घने जंगलों के बीच बगलानी की पहाड़ियों पर स्थित यह मंदिर श्रद्धा के साथ क्षेत्र का मुख्य दर्शनीय स्थल है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल में अपने वनवास के दौरान धर्मराज युधिष्ठिर ने नर्मदा तट पर भगवान की पूजा करने के लिए इस शिवलिंग की स्थापना की थी, तभी से इसका नाम धर्मेश्वर महादेव पड़ा। नर्मदा पुराण सहित अन्य ग्रंथों में इसका उल्लेख है।
शिवरात्रि पर हुई थी मंदिर में स्थापना
सतवास से करीब 20 किमी दूर सतवास-पुनासा रोड पर बगलानी की पहाड़ियों पर स्थित इस मंदिर की स्थापना की गई है। किटी, धर्मपुरी, जिनवानी आदि में स्थित छोटे-बड़े सभी मंदिर व देवस्थान डूब की परिधि में आ गए, लेकिन भगवान धर्मेश्वर के प्रमुख उपासक व मंदिर की देखभाल करने वाले संत काशी मुनि उदासीन धर्मेश्वर मंदिर को नर्मदा तट के समीप ही प्रमुख तीर्थ स्थल बनाना चाहते थे। वर्ष 2003 में मंदिर का निर्माण प्रारंभ हुआ और 2010 में शिवरात्रि पर नवर्निमित मंदिर में स्थापना की गई।
परिक्रमावासियों के लिए चलता है अन्नक्षेत्र
इस मंदिर में संत काशी मुनि उदासीन के सान्निध्य में नर्मदा परिक्रमावासियों के लिए पूरे बारह मास अन्नाक्षेत्र चलता है। वर्तमान में श्रद्धालुओं द्वारा सामुदायिक भवनों के निर्माण से श्रद्धालुओं को बड़ी सुविधा मिल रही है। मंदिर संस्थापक संत काशी मुनि उदासीन, मंदिर पुजारी पं. सुदीप जोशी व आचार्य पं. विवेक व्यास के सान्निध्य में मंदिर ट्रस्ट द्वारा गुरु पूर्णिमा, शिवरात्रि, श्रावण मास में यहां बड़े धार्मिक आयोजन किए जाते हैं।
मनोकामना पूरी होती है
मंदिर संस्थापक संत काशी मुनि उदासीन ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं में नर्मदा के हर कंकर को भगवान शंकर का रूप माना गया है। वर्तमान में यह देवास जिले का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल बन गया है। यहां सच्चे मन से प्रार्थना करने पर भक्तों की मनोकामना अवश्य पूरी होती है।