नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। मध्य प्रदेश के धार नगर में स्थित ऐतिहासिक भोजशाला एक मंदिर ही है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा किए गए सर्वे में इसके कई प्रमाण मिले हैं। एएसआई की रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि वर्तमान संरचना (कमाल मौला दरगाह) का निर्माण करने में यहां पहले से मौजूद रहे मंदिर के ही हिस्सों का उपयोग किया गया था।
करीब दो हजार पेज की रिपोर्ट में 10 खंड हैं। इनमें सर्वे के दौरान एकत्रित 1700 से ज्यादा प्रमाण और खोदाई में मिले अवशेषों का विश्लेषण किया गया है। निष्कर्ष 151 पेज में संकलित किया गया है। इसमें कहा गया है कि भोजशाला के सर्वे में मिली कलाकृतियां बेसाल्ट, संगमरमर, नरम पत्थर, बलुआ पत्थर और चूना पत्थर से तैयार की गई थी, जो इसे कलात्मक विरासत की झलक प्रदान करती थीं।
सर्वे के दौरान सामने आए प्रमाण स्पष्ट इंगित करते हैं कि भोजशाला एक मंदिर ही है। सर्वे के दौरान एक शिलालेख भी मिला, जिसमें वर्णित है कि भोजशाला पर आक्रमण हुआ था और तोड़फोड़ भी की गई थी। मूर्तियों को तोड़कर इस परिसर को मस्जिद में बदला गया था।
Dhar, Madhya Pradesh | Devotees have gathered outside Bhojshala complex to offer prayers
A devotee says, "This Bhojshala was made by Raja Bhoj. Hanuman Chalisa is recited here and prayers at offered to Maa Saraswati."
I appeal to the Government of India that the Bhojshala… pic.twitter.com/4QU3XDI1qn
— ANI MP/CG/Rajasthan (@ANI_MP_CG_RJ) July 16, 2024
भोजशाला को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। एएसआइ द्वारा संरक्षित 11वीं सदी में बनी भोजशाला को हिंदू और मुस्लिम पक्ष अलग-अलग नजर से देखते हैं। हिंदू इसे वाग्देवी (सरस्वती देवी) का मंदिर मानते हैं, वहीं मुस्लिम पक्ष इसे कमाल मौलाना मस्जिद बताता है।
भोजशाला को लेकर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में कई याचिकाएं पर सुनवाई चल रही है। हिंदू फार जस्टिस नामक संगठन ने करीब एक वर्ष पहले हाई कोर्ट में नई याचिका दायर कर भोजशाला परिसर में प्रत्येक शुक्रवार को होने वाली नमाज रोकने की मांग की थी। याचिका में कहा गया कि हिंदू धर्मावलंबी मंगलवार को भोजशाला में पूजा करते हैं, जबकि मुस्लिम समाज के लोग शुक्रवार को परिसर में नमाज कर उसे अपवित्र कर देते हैं।
इस याचिका पर हाई कोर्ट ने इसी वर्ष 11 मार्च को एएसआई को आदेश दिया था कि वह वाराणसी स्थित ज्ञानवापी की तरह भोजशाला का भी वैज्ञानिक सर्वे कर रिपोर्ट प्रस्तुत करें। एएसआई के वकील हिमांशु जोशी ने बताया कि हमने सोमवार को रिपोर्ट की छह प्रतियां कोर्ट को सौंपी हैं।
इनमें से दो प्रति कोर्ट के लिए, एक याचिकाकर्ता के लिए और तीन अन्य पक्षकारों के लिए है। कोर्ट अब इस रिपोर्ट पर 22 जुलाई को होने वाली सुनवाई में विचार करेगी। हालांकि याचिका लगाने वाले संगठन से जुड़े लोग दावा कर रहे हैं कि सर्वे में कई प्राचीन मूर्तियां भी मिली हैं, जो इस बात की पुष्टि करती हैं कि भोजशाला मंदिर ही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वे में मिले स्तंभों और उसकी कला व वास्तुकला से यह कहा जा सकता है ये स्तंभ पहले मंदिर का हिस्सा थे, बाद में मस्जिद के स्तंभ बनाते समय उनका पुन: उपयोग किया गया था। मौजूदा संरचना में चारों दिशाओं में खड़े 106 और आड़े 82 (कुल 188) स्तंभ मिले हैं। इनकी वास्तुकला से पुष्टि होती है कि ये स्तंभ मंदिरों का ही हिस्सा थे।
उन्हें वर्तमान संरचना (कमाल मौला दरगाह) बनाने के लिए उन पर उकेरी गई देवताओं और मनुष्यों की आकृतियों को विकृत कर दिया गया। मानव और जानवरों की कई आकृतियां, जिन्हें मस्जिदों में रखने की अनुमति नहीं है, उन्हें छैनी जैसी वस्तु का इस्तेमाल कर विकृत किया गया था। रिपोर्ट में यह दावा भी किया गया है कि मौजूदा संरचना में संस्कृत और प्राकृत भाषा में लिखे कई शिलालेख मिले हैं। ये भोजशाला के ऐतिहासिक, साहित्यिक और शैक्षिक महत्व को उजागर करते हैं।
सर्वे में एक ऐसा शिलालेख भी मिला, जिस पर राजा नरवर्मन परमार (1097-1134) का उल्लेख है। मालवा के परमार वंशीय शासकों में से एक नरवर्मन ने यहां शासन किया था। यह बात भी सामने आई है कि भोजशाला के पश्चिम क्षेत्र में लगाए गए कई स्तंभों पर उकेरे गए 'कीर्तिमुख', मानव, पशु और मिश्रित चेहरों वाली सजावटी सामग्री को मस्जिद-दरगाह बनाते समय नष्ट नहीं किया गया था।
सर्वे में दीवारों में खिड़की के फ्रेम पर उकेरी गई देवताओं की छोटी-छोटी आकृतियां मिली हैं, जिनकी हालत अन्य आर्टिकल के मुकाबले बहुत अच्छी है। दो स्तंभ ऐसे भी मिले हैं, जिन पर 'ऊं सरस्वतै नम:' लिखा है। इसके अलावा भोजशाला को राजा भोज द्वारा बनाए जाने के प्रमाण भी सामने आए हैं। भोजशाला परिसर के सर्वे के दौरान 94 ऐसी मूर्तियां मिली हैं, जिन पर महीन नक्काशी की गई है।
इसके अलावा कई अन्य आर्टिकल भी मिले हैं, जो भोजशाला के मंदिर होने की ओर संकेत कर रहे हैं। उकेरी गई छवियों में गणेश, अपनी पत्नियों के साथ ब्रह्मा, नृसिंह, भैरव, देवी-देवता, मानव और पशु आकृतियां शामिल थीं।
जानवरों की छवियों में शेर, हाथी, घोड़ा, श्वान, बंदर, सांप, कछुआ, हंस और पक्षी शामिल हैं। 30 सिक्के भी मिले हैं। ये चांदी, तांबा और अन्य धातुओं के हैं और परमारकालीन हैं। परिसर की खुदाई में जमीन में बहुमंजिला संरचना होने के पुख्ता प्रमाण सामने आए हैं।