
सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि यह गड्ढा आदिवासी बालक छात्रावास के बिल्कुल समीप है, जहाँ करीब 50 छात्र रहते हैं। इन छात्रों को रोजाना इसी गड्ढे के किनारे से होकर अपने कक्षों तक जाना पड़ता है। मात्र छह से दस इंच चौड़ा रास्ता बचा है, जबकि उसके बगल में यह 20 फीट गहराई वाला गड्ढा खुला पड़ा है, जो किसी भी वक्त हादसे को जन्म दे सकता है।
बरसात के मौसम में जमीन फिसलन भरी होने से खतरा और भी बढ़ गया है। यदि कोई छात्र या कर्मचारी फिसल जाए, तो गंभीर दुर्घटना की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद शिक्षा विभाग और निर्माण एजेंसी ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
छात्रावास अधीक्षक कुंवरसिंह सोलंकी ने बताया कि उन्होंने निर्माण एजेंसी को मौखिक रूप से गड्ढा बंद करने की सूचना दी थी, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। उनका कहना है कि गड्ढा दो माह पहले खोदकर ऐसे ही छोड़ दिया गया है, जिससे बच्चों की सुरक्षा खतरे में है।
आश्चर्य की बात यह है कि विद्यालय परिसर में शिक्षा संकुल केंद्र का संचालन भी होता है। यहां संकुल केंद्र प्रभारी और प्राचार्य का कार्यालय भी इसी परिसर में है, फिर भी पिछले दो महीनों से किसी ने गड्ढे को बंद कराने की कोशिश नहीं की। यह स्थिति बताती है कि स्कूल प्रशासन और निर्माण एजेंसी दोनों की जिम्मेदारी कितनी कमजोर हो चुकी है।
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बीईओ निसरपुर हीरालाल निगवाल ने कहा, “आपके माध्यम से मुझे यह जानकारी मिली है। यह एक बड़ी लापरवाही है। इस ओर अब तक ध्यान क्यों नहीं दिया गया, यह मैं दिखवा रहा हूं और तत्काल कार्रवाई कराऊंगा।”
हालांकि, गड्ढा अभी भी खुला है और खतरा बना हुआ है। विद्यालय परिसर में प्रतिदिन शिक्षक, कर्मचारी और छात्र आते हैं, पर यह खुला गड्ढा प्रशासनिक संवेदनहीनता का प्रमाण है। यदि समय रहते इसे नहीं भरा गया, तो किसी बड़ी अनहोनी से इनकार नहीं किया जा सकता।