नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। मूत्र मार्ग संकुचन (यूटेथ्रल स्ट्रिक्चर) की जटिल बीमारी से जूझ रहे मरीजों के लिए आयुर्वेद ने नई उम्मीद जगाई है। जनरल ऑफ रिसर्च इन आयुर्वेद साइंस में चार सितंबर को प्रकाशित शोध में यह पाया गया है कि आयुर्वेद की उत्तर बस्ती नामक चिकित्सा पद्धति इस रोग के लिए प्रभावी, सुरक्षित और दीर्घकालिक समाधान है।
इस चिकित्सा पद्धति से असाधारण लाभ का दावा किया गया है। क्षेत्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान ग्वालियर के अनुसंधान अधिकारी डॉ. अनिल मंगल व डॉ. अविनाश जैन (जयपुर) की देखरेख में यह शोध आयुर्वेद चिकित्सक एसएन पांडे ने किया है।
उत्तर बस्ती नामक इस चिकित्सा पद्धति को केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद(सीसीआरएएस) के प्रोजेक्ट में शामिल किया गया। सितम्बर 2023 में इस पर काम शुरू किया गया था। शोध में 35 वर्षीय एक युवक को शामिल किया गया जो लंबे समय से मूत्र मार्ग के संकुचन की समस्या से परेशान था। उसने कई बार सर्जरी करवाई, लेकिन हर बार राहत अस्थायी ही रही।
परीक्षण के बाद उसका इलाज आयुर्वेदिक पद्धति उत्तर बस्ती के माध्यम से शुरू किया गया। इलाज के कुछ ही समय बाद मरीज को असाधारण लाभ महसूस हुआ, और धीरे-धीरे बीमारी से छुटकारा मिल गया।
प्रति लाख में 300 पुरुष होते हैं इस रोग से प्रभावितमूत्र मार्ग संकुचन रोग प्रति एक लाख पुरुषों में से करीब 300 को प्रभावित करता है। यह बीमारी अधिकतर 35 से 55 वर्ष की आयु के पुरुषों में देखी जाती है। इसका समय रहते इलाज न होने पर जीवन की गुणवत्ता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। यह है उत्तर बस्ती चिकित्सा पद्धतिआयुर्वेद में उत्तर बस्ती, जिसे उत्तर वस्ति भी कहा जाता है, एक विशिष्ट आयुर्वेदिक उपचार है।
जिसमें औषधीय तेलों या काढ़ों को मूत्रमार्ग में डाला जाता है। यह एक पंचकर्म प्रक्रिया ही है। उत्तर बस्ती महिलाओं के लिए बांझपन, फैलोपियन ट्यूब ब्लाकेज, और मासिक धर्म संबंधी अनियमितताओं को ठीक करने में भी प्रभावी है।
आयुर्वेद न केवल लक्षणों को ठीक करता है, बल्कि रोग की जड़ तक पहुंचता है। उत्तर बस्ती जैसी विधियों से मूत्र मार्ग संकुचन जैसे रोगों का स्थायी समाधान संभव है। इस सफलता के बाद सीसीआरएएस ने इसे प्रोजेक्ट के रूप में स्वीकार किया है। डॉ. अनिल मंगल, अनुसंधान अधिकारी, आयुर्वेद संस्थान, ग्वालियर।