
Emergency 1975: ग्वालियर. नईदुनिया प्रतिनिधि। जून 1975 की रात काफी भारी थी। उस दौर में सूचनाओं के संचार साधन रेडियो, टीवी, और समाचार पत्र ही थे। इंटरनेट मीडिया भी नहीं था। पुलिस गैर कांग्रेसी नेताओं के घरों पर दस्तक दे रही थी। बगैर कारण बताए जवान एक ही बात कह रहे थे, चलो एसपी साहब व टीआइ साहब ने बुलाया है। थाने पहुंचने पर कुछ नहीं बताया जा रहा था। बस एक कोने में बैठाया जा रहा था। थाने पहले से बड़े नेता पहले से बैठे थे। तड़के मालूम चला कि देश इमरजेंसी लगा दी गई है। मीसा शब्द भी पहली बार सुना था। थाने सभी लोग बेफिक्र थे कि शाम तक छोड़ दिया जाएगा, क्योंकि हम लोगों ने कोई अपराध तो नहीं किया था। जेल पहुंचने पर पता चला कि न जाने कब रिहाई मिलेगी, क्योंकि इमरजेंसी में एक ही सूत्र चल रहा था नो दलील, नो अपील और नो वकील।
मीसा बंदी मदन बाथम ने बताया कि उस समय वे छात्र राजनीति में सक्रिय थे। 25 जून की रात को पुलिस घर आई। जवानों ने बताया कि टीआइ साहब ने थाने बुलाया है। सुबह ही मीसा बंदी में गिरफ्तारी का कागज थामकर जेल भेज दिया गया। उस समय पता नहीं था कि मीसा बंदी क्या होती है। ऐसा लगा कि एक दो दिन में छूट जाएंगे। चिट्टी पत्री पर सेंसर लगा हुआ था। उसी दौरान बीकाम द्वितीय वर्ष की परीक्षा थीं। गुना के पू्र्व विधायक रामस्वरूप सक्सेना भी जेल में थे। उन्होंने पूछा कि परीक्षा कब हैं, मैंने बताया कि जुलाई में है। उन्होंने स्वयं एक ही आवेदन लिखा और अपने भाई के पास किसी तरह से भेजा। उनके भाई जाने-माने वकील थे। उन्होंने कोर्ट में अपील की। सरकारी वकील ने दलील की कि मेरे रिहा होने से शहर की शांति व्यवस्था बिगड़ सकती है। उसके बाद कोर्ट के आदेश पर प्रोफेसर को मेरी परीक्षा लेने के जेल भेजा। जेल में मौजूद लोगों ने किसी तरह से मेरी तैयारी कराई और मैं पास हुआ।
वरिष्ठ साहित्यकार सेवानिवृत्त जगदीश सिंह तोमर ने इमरजेंसी के दिनों को याद करते हुए बताया कि 25 जून की रात को मुझे कुछ पता नहीं चला कि देश में क्या हुआ है। सुबह उठने पर सबसे पहले खबर पढ़ने की आदत थी। उस दिन अखबार नहीं मिला। पड़ोसी में डाक्टर मनमोहन बत्रा रहते थे। उनके घर अखबार लेने के लिए गया। उन्होंने बताया कि रात में देश में इमरजेंसी लग गई है। कई नेता गिरफ्तार हो चुके हैं। मैं भी इधर-उधर हो रहा हूं। मैंने उनसे कहा कि मैं तो स्कूल का प्राचार्य हूं। मुझे कौन पकड़ेगा। उसके बाद तैयार होकर स्कूल गया। सड़कों पर सन्नाटा, लोग एक दूसरे से बात करने से भी डर रहे थे। इसके बाद रात को पिक्चर देखने के लिए चला गया। रात 12 बजे घर लौटा। पुलिस दरवाजे पर खड़ी थी। पुलिस कर्मियों ने बताया कि चौराहे पर एसपी साहब खड़े हैं। उसके बाद मुझे जनकगंज थाने ले जाया गया। रात को इतना अवश्य किया कि सोने के लिए खटिया खुले में डाल दी गई। तीन दिन जनकगंज थाने में रहा। उसके बाद जेल भेज दिया गया। माधवशंकर इंदापुरकर, भाऊ साहब पौतनीस सहित कई नेता पहले जेल में थे। इन लोगों ने मेरा स्वागत जेल में यह कहकर किया कि बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी। 11 माह जेल में रहा। इंदिरा गांधी के चुनाव हारने के बाद जेल से रिहा हुआ। जेल से बाहर आते ही गर्मजोशी से हम लोगों को स्वागत हुआ।