नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। जिले में धान की कटाई के बाद पराली जलाने वाले किसानों पर सख्ती बरती जा रही है। जो किसान बार-बार पराली जलाते हुए चिह्नित किए गए हैं, उन्हें मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना के तहत मिलने वाली छह हजार रुपये की राशि नहीं दी जाएगी।
यही नहीं, यदि उसी गांव की सीमा में किसी किसान ने पराली जलाई तो उस गांव के सभी किसानों को भी नुकसान उठाना पड़ेगा। सरकार ऐसे गांव की फसलों को एमएसपी पर नहीं खरीदेगी, जिससे किसानों को मजबूरन खुले बाजार में फसल बेचनी होगी। इसके साथ ही पराली और फसल अवशेष जलाने वालों पर अर्थदंड और अन्य कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी। दो एकड़ से कम पर ढाई हजार और दो से पांच एकड़ पर पांच हजार रुपये प्रति घटना का जुर्माना तय किया गया है।
एक किसान की गलती, पूरे गांव को सजा
यदि किसी गांव का किसान पराली जलाते हुए चिह्नित होता है तो न केवल उसकी किसान कल्याण की राशि रोकी जाएगी, बल्कि आगामी सालों में पूरे गांव की फसल सरकार एमएसपी पर नहीं खरीदेगी। इस तरह एक किसान की गलती पूरे गांव के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है।
पराली जलाने से होने वाले नुकसान
एक टन पराली में मौजूद नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, सल्फर और जैविक कार्बन पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं।
मिट्टी का तापमान, नमी, पीएच और कार्बनिक पदार्थ बुरी तरह प्रभावित होते हैं।
एक टन पराली जलाने से 11 किलो पीएम, 58 किलो कार्बन मोनोऑक्साइड, 1400 किलो कार्बन डाइऑक्साइड, 199 किलो राख और 1.2 किलो सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जित होती है। ये गैसें वायु गुणवत्ता को बिगाड़ती हैं और मानव स्वास्थ्य पर घातक असर डालती हैं।
पराली प्रबंधन के विकल्प
पराली को खेत में मिला देने से मिट्टी में पोषक तत्व लौट आते हैं।
यंत्रीकृत विधि से पराली का वैकल्पिक उपयोग कर अतिरिक्त आय पाई जा सकती है।
पराली से उच्च गुणवत्ता की जैविक खाद (कम्पोस्ट) बनाई जा सकती है।
पेपर, गत्ता, फर्नीचर, मशरूम उत्पादन और पैकेजिंग कंपनियां पराली को कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल कर सकती हैं।
अधिकारियों का क्या कहना
किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग के उप संचालक,आरबीएस जाटव का कहना है कि “जिले में किसानों को पराली न जलाने और उसका प्रबंधन करने की हिदायत दी गई है। जो किसान बार-बार पराली जलाते हुए पकड़े जाएंगे, उनकी किसान कल्याण की राशि रोक दी जाएगी। साथ ही ऐसे गांव की फसल सरकार एमएसपी पर नहीं खरीदेगी।”
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