नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर पीठ में टंकण त्रुटि (टाइपिंग चूक) का अनूठा मामला सामने आया। हत्या के एक मामले में कोर्ट ने जिसे जमानत दी थी, उसकी याचिका रद्द होने का आदेश जारी हो गया और जिसकी याचिका रद्द की गई थी, उसकी जमानत का आदेश बन गया। वेबसाइट पर आदेश अपलोड होने के बाद चूक संज्ञान में आई। इसके बाद वेबसाइट पर अपलोड दोनों आदेश तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिए गए।
विदिशा के त्योंदा थाना क्षेत्र में पांच जुलाई, 2024 प्रकाश पाल की हत्या हुई थी। इसमें हलके आदिवासी, उसके पुत्र अशोक आदिवासी व रिश्तेदार धर्मेंद्र आदिवासी पर हत्या करने का आरोप है। हलके और अशोक ने हाई कोर्ट में अलग-अलग जमानत याचिका दायर की। ये सभी एक साल से जेल में बंद हैं। दोनों याचिकाओं पर अलग-अलग सुनवाई हुई।
कोर्ट ने अशोक को जमानत दी थी, जबकि हलके आदिवासी की याचिका खारिज कर दी थी, लेकिन आठ अगस्त को जब बेवसाइट पर आदेश अपलोड हुआ तो उसमें अशोक की याचिका खारिज होने और हलके आदिवासी को जमानत मिलने का आदेश देख अशोक के अधिवक्ता सकते में आ गए।
इधर रोचक बात यह हुई कि हलके आदिवासी के अधिवक्ता ने जमानत बांड भरवाकर उसे जेल से रिहा करवाने की तैयारी शुरू कर दी। तब तक इस चूक का मामला हाई कोर्ट के संज्ञान में आ चुका था। कोर्ट ने तत्काल प्रभाव से वेबसाइट पर अपलोड आदेश पर रोक लगा दी। 11 अगस्त को फिर नए सिरे से आदेश जारी हुए। इस गफलत के कारण अशोक को वास्तविक जमानत आदेश के चार दिनों बाद जमानत मिल पाई।
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