नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। मोबाइल, टैब और लैपटॉप की चमक बच्चों की आंखों की रोशनी पर खतरनाक असर डाल रही है। मायोपिया (निकट दृष्टिदोष), जो पहले किशोरावस्था में नजर आता था, अब तीन से चार साल के बच्चों में भी दिखने लगा है। छह से 12 साल के बच्चों में इसके मामले और ज्यादा देखे जा रहे हैं।
मध्य प्रदेश के ग्वालियर में आयोजित स्टेट ऑप्थेल्मिक सोसाइटी की 48वीं वार्षिक संगोष्ठी ‘चाक्षुषी’ में जुटे देशभर के नेत्र विशेषज्ञों ने इस पर गंभीर चिंता जताई। नईदुनिया से चर्चा में एम्स दिल्ली के पूर्व वरिष्ठ नेत्र चिकित्सक डॉ. प्रदीप शर्मा ने बताया कि पहले मायोपिया के मामले 14 प्रतिशत तक सीमित थे, लेकिन अब यह 25 प्रतिशत तक पहुंच चुके हैं। अगर यही रफ्तार रही, तो 2050 तक हर दूसरा बच्चा मायोपिक हो सकता है। उन्होंने चेताया कि बच्चों की डिजिटल आदतें बदलना ही इसका एकमात्र समाधान है।
डॉ. शर्मा की सलाह
क्या है मायोपिया?
मायोपिया एक प्रकार का रिफ्रैक्टिव एरर है, जिसमें पास की चीज साफ नजर आती है लेकिन दूर की चीज धुंधली दिखती है। इसमें रोशनी रेटिना पर फोकस न होकर उसके सामने फोकस करती है। इसके पीछे जेनेटिक्स, ज्यादा स्क्रीन टाइम, बाहर खेलने-कूदने में कमी और इंडोर लाइफस्टाइल की बड़ी भूमिका है।
मायोपिया को ठीक करने के लिए चश्मे का इस्तेमाल किया जाता है। यदि यह बीमारी ज्यादा बढ़ जाए तो मैक्युलर डिजेनरेशन, रेटिनल डिटैचमेंट और ग्लूकोमा जैसी गंभीर व स्थायी समस्याएं भी हो सकती हैं।