नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ ने थाटीपुर निवासी एक परिवार की दो बहुओं द्वारा दायर मुकदमे को बनाए रखते हुए सास की आपत्ति के लिए लगाए मामले को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट की एकल पीठ ने आदेश पारित करते हुए कहा था कि वैवाहिक घर में रहने का अधिकार बहुओं का वैध अधिकार है, भले ही वे अपने ससुराल की संपत्ति में ‘सहभागी या उत्तराधिकारी’ न हों।
इस मामले में बहुओं की ओर से पैरवी करने वाले अधिवक्ता आरके सोनी ने बताया कि यह मामला सास द्वारा दायर की गई आपत्ति याचिका से जुड़ा था। याचिकाकर्ता सास ने कहा था कि उनके दो बेटों की पत्नियां संपत्ति में हिस्सेदारी का दावा नहीं कर सकतीं, इसलिए उनके द्वारा संपत्ति में हिस्सेदारी का मुकदमा कायम नहीं रह सकता।
वहीं दूसरी ओर, बहुओं ने मुकदमा दायर कर अपने वैवाहिक घर में रहने का अधिकार और उन्हें बेदखल करने से रोकने की मांग की थी। बहुओं का आरोप था कि ससुराल पक्ष उन्हें मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना देकर घर से निकालने का प्रयास कर रहा है। हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत बेटियों या बहुओं को संपत्ति में अधिकार नहीं दिया गया है, लेकिन वैवाहिक घर में रहने का अधिकार एक अलग और मान्यता प्राप्त अधिकार है।
अदालत ने कहा कि बहुओं को उनके साझा घर में रहने से नहीं रोका जा सकता और घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम के तहत भी उन्हें यह अधिकार प्राप्त है। अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि यदि मुकदमे में दावा किए गए कई राहतों में से एक भी राहत विधिसम्मत है तो पूरा मुकदमा खारिज नहीं किया जा सकता। इसलिए केवल संपत्ति में हिस्सेदारी का दावा न मान्य होने पर मुकदमा समाप्त नहीं किया जा सकता। हाई कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा बहुओं की याचिका खारिज करने के आदेश को रद्द करते हुए मुकदमे को आगे बढ़ने की अनुमति दी। साथ ही स्पष्ट किया कि वैवाहिक घर में रहने का अधिकार बहुओं का संरक्षित कानूनी अधिकार है।