ग्वालियर. नईदुनिया प्रतिनिधि। ग्वालियर भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह शहर मध्यकालीन भारतीय इतिहास का गवाह है। नजरें दौड़ाने पर नजर आने वाला इतिहास अपने आप में एक कहानी समेटे हुए है। इसी का हिस्सा है फूलबाग बारादरी। यानी ढंका हुआ पवेलियन। यह चारों तरफ से दीवार, खिड़कियों और दरवाजों से घिरा हुआ है। सांझ ढलते ही यहां शहरवासियों को सुकून से वक्त बिताते हुए देखा जा सकता है। ऐतिहासिक दृष्टिकोंण से बरामदे को ही बारादरी कहा जाता है। आर्किटेक्ट के नजरिए से कोई भी स्थल बारादरी तभी कहलाता है, जब उसके कम से कम 12 आर्च और 12 दरवाजे हों। फूलबाग बारादरी यह सब खूबियों को अपने आप में समेटे हुए है।
जानकारों के अनुसार कंपू कोठी (कमलाराजा गर्ल्स कालेज) से जयविलास पैलेस में सिंधिया राजपरिवार रहने के लिए जब पहुंचा, तो सबसे पहले उसे ऐसी जगह की जरूरत महसूस हुई, जहां राजपरिवार के सदस्य व उनके मेहमान मनोरंजन के लिए घूम सकें। ऐसे में फूलबाग क्षेत्र में लेडीज क्लब (जलविहार व बारादरी) और जेंटलमैन क्लब (एएमआइ शिशु मंदिर परिसर) की स्थापना की गई। यह दोनों क्लब वर्ष 1874 में तैयार कराए गए थे। जलविहार और बारादरी लकड़ी के एक मजबूत पुल से आपस में जुड़े हुए थे, हालांकि अब हालात बदल गए हैं। जलविहार में राजपरिवार व उनकी महिला मेहमानों के लिए बैडमिंटन जैसे खेल हुआ करते थे और बारादरी में नौकायन होता था।
पुरातत्वविद रमाकांत चतुर्वेदी बताते हैं कि स्वतंत्रता के बाद जब सरकार ने राजपरिवार की संपत्तियों का विलय किया, तो ये संपत्तियां भी सरकार के पास चली गईं। इसके बाद इस बारादरी को स्कूल शिक्षा विभाग को सौंप दिया गया था। स्कूल शिक्षा विभाग ने यहां बच्चों के लिए बाल मेले लगाए। वर्षों तक बाल मेलों की मेजबानी करने वाली इस बारादरी पर कुछ समय तक स्थानीय दुकानदारों ने हस्तशिल्प की दुकानें भी लगाईं। इसके बाद अनदेखी के चलते बारादरी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच गई। कई साल तक इसी हाल में रहने के बाद प्रशासन ने बारादरी की सुध ली और इसका जीर्णोद्घार कराया। वर्ष 2009-10 में जीर्णोद्घार के बाद बारादरी की रंगत फिर लौट आई। अब यह सैलानियों की खासी पसंद है। फूलबाग घूमने आने वाले लोग चिड़ियाघर में वन्य प्राणियों को देखने के बाद बारादरी में सेल्फी लेने जरूर जाते हैं।
बड़ा रोचक है इतिहास, पढ़िए..
साइफन पद्घति से आता था पानी़जियविलास पैलेस, जलविहार और बारादरी में हनुमान बांध से साइफन पद्घति से पानी आता था। हनुमान बांध से पहले यह पानी कटोराताल में इकट्ठा होता था। यहां से जयविलास पैलेस और जलविहार में पानी आता था। जलविहार के फव्वारों से यह पानी गिरता था और इसे बारादरी तक लाने के लिए बाकायदा फव्वारों की नालियां तैयार की गई थीं। इससे यह पानी बारादरी में आकर आ जाता था। जीर्णोद्घार के बावजूद बारादरी के पुराने स्थापत्य में पानी लाने के लिए पुरानी नालियां आज भी मौजूद हैं। यह अलग बात है कि अब जलविहार से इनमें पानी नहीं आता है।