Ram Mandir Ayodhya: ग्वालियर,(नईदुनिया प्रतिनिधि) राष्ट्रीय स्वयं सेवक में जिलास्तर पर बौद्धिक व गौसंरक्षण प्रमुख का दायित्व संभाल चुके राकेश गुप्ता वर्तमान में सरस्वती शिशु मंदिर का दायित्व संभाल रहे हैं। राकेश गुप्ता स्वयं को सौभाग्यशाली मानते हैं कि रामजन्म भूमि मुक्ति आंदोलन में 1990 व 1992 में हुई कारसेवा में शामिल होने का अवसर प्रभु श्रीराम ने प्रदान किया। लंबे संघर्ष के बाद 22 जनवरी को रामलला चबुतरे से भव्य मंदिर में विराजित होंगें। मेरी भी इच्छा है कि रामलला को आलोकिक मंदिर में दर्शन करो, लेकिन आठ माह पहले ही हुए ब्रेन हेमरेज के कारण शारीरिक रूप से कमजोर हूं। अगर प्रभू की इच्छा हुई तो एक बार अवश्य रामलला के दर्शन करने के लिए पवित्र व पावन नगरी ्अयोध्याधाम जाऊंगा। रामजन्म भूमि मुक्ति के लिए हुई कारसेवा का स्मरण करते हुये कहा कि 1990 में ही मेरा विवाह हुआ था। आठ माह बाद ही संकल्प को पूरा करने के लिए गुप्ता वाहिनी की 10 सदस्यीय टोली के साथ अयोध्या के लिए रवाना हो गया। कारसेवा के दौरान हुई गोलीबारी के बाद लगभग एक माह बाद घर वापस लौटा। जबकि सभी लोगों ने मान लिया था मुझे भी सरयू के पवित्र जल में बहा दिया गया।
दीपावली की यम द्वितीय के दिन कारसेवा के लिए रवाना हुए- शीर्ष नेतृत्व के निर्देश गुप्त वाहिनी के सदस्य के रूप में भाई दौज को हम दस सदस्यीय टोली के साथ अयोध्या के लिए रवाना हुए। यह संकल्प लेकर गए थे कि मंदिर निर्माण के लिए बलिदान के लिए पीछे नहीं हटेंगे। ट्रेन से लखनऊ पहुंच गए। उसके बाद अयोध्या पहुंचना आसान नहीं था कि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने एलान कर दिया था कि अयोध्या कारसेवा तो दूर परिंदा भी पर नहीं मार सकता है। सरकार के इसी दंभ ने कारसेवकों ने उत्साह व जोश का संचार किया था। स्टेशन से एक सदस्य वापस लौट गया। उसके बाद हम लोगों ने पैदल ही अयोध्या जाना तय किया। हम लोगों को कोड वर्ड में दिया गया था। पहले फैजाबाद पहुंचे। उसके बाद पटरी रात के अंधेरे में सफर करना तय किया। रेल के गार्ड ने हम लोगों की मदद की और देवराह कोटा गांव पहुंचा दिया। ग्रामीणों ने एक खेत में अलाव जलाकर ठहरा दिया, उसके बाद खाने की व्यवस्था की। तड़के तीन बजे ग्रामीण हम लोगों को गांव में ले गए। पुलिस के डर से एक घर में एक परिवार में रिश्तेदार बनकर ठहराया। उसके बाद ग्रामीणों ने हमें अयोध्या में दाखिल कराने में मदद की। वहां गोलियां चल रहीं थी। हम लोगों को गिरफ्तार कर इलाहाबाद ले जाया गया।जहां जेल हाउस फूल होने पर आजमगढ़ ले जाकर छोड़ दिया गया। हम लोग फिर अयोध्या पहुंच गए। जहां हमे घायलावस्था नरेंद्रपाल सिंह भदौरिया मिले। हम लोग कुछ दिन अयोध्या बीताने के बाद वापस घर लौटे। जबकि घरवाले तो मान बैठे थे कि अयोध्या में हमारा बलिदान हो गया। दूसरी कारसेवा में घरवालों को बगैर बताये गये और विवादित ढाचा गिरने व रामलला के चबुतरे पर विराजित होने पर खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। आज उतनी ही अपार खुशी राममंदिर निर्माण का सपना साकार होने पर हो रही है।