
अनूप भार्गव, नईदुनिया, ग्वालियर। देशभर के 29 राज्यों के 620 जिलों से एकत्र 2,54,236 मृदा नमूनों पर किए गए व्यापक अध्ययन के बाद कृषि वैज्ञानियों ने चेतावनी दी है कि उर्वरकों के अत्याधिक प्रयोग और जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि योग्य भूमि में आर्गेनिक कार्बन तेजी से घट रहा है। वर्ष 2017 में शुरू होकर छह साल चले इस अध्ययन का निष्कर्ष अब अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका लैंड डिग्रेडेशन एंड डेवलपमेंट में प्रकाशित हुआ है। वर्ष 2019 से 2024 के बीच अप्रैल से जून के महीनों में कृषि विज्ञानियों ने नमूने एकत्रित किए थे।
भोपाल स्थित आईसीएआर भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान द्वारा समन्वित इस छह वर्षीय परियोजना में राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर के कुलगुरु डॉ. अरविंद कुमार शुक्ला सहित आईसीएआर के महानिदेशक मांगी एल जाट, संजीव के बेहरा, राहुल मिश्रा, विमल शुक्ल, सलविंदर एस धालीवाल, चेरुकुमल्ली श्रीनिवास राव, अमरेश के नायक विज्ञानी शामिल रहे।
डॉ. शुक्ला ने बताया कि अध्ययन में मिट्टी के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों का समग्र मूल्यांकन किया गया। उन्होंने कहा कि लगभग 25 वर्ष पहले एफएओ की एक रिपोर्ट में भी यह मुद्दा उठाया गया था, लेकिन नमूनों की संख्या बहुत कम थी। इस बार देशभर से बड़े पैमाने पर विज्ञानी तरीके से नमूने एकत्र किए गए, जिसमें कृषि योग्य और बंजर दोनों तरह की भूमि शामिल रहीं।
अध्ययन के अनुसार, जहां मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन कम पाया गया, वहां सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी अधिक दर्ज की गई। टीम ने पुराने वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर तापमान और वर्षा को आर्गेनिक कार्बन का प्रमुख निर्धारक बताया और पूरे देश में इनका मजबूत सहसंबंध स्थापित किया।
अध्ययन में पाया गया कि भूमि की ऊंचाई बढ़ने पर मिट्टी का आर्गेनिक कार्बन स्तर भी बढ़ जाता है, जबकि मैदानी और निचले क्षेत्रों में इसकी मात्रा कम हो जाती है। आर्गेनिक कार्बन का तापमान से नकारात्मक संबंध पाया गया। राजस्थान और तेलंगाना जैसे गर्म राज्यों में आर्गेनिक कार्बन का स्तर काफी कम है।
टीम द्वारा विकसित कृषि-पारिस्थितिक आधार मानचित्र के आधार पर पता चला कि जहां यूरिया और फास्फोरस आधारित उर्वरकों का अत्यधिक और असंतुलित उपयोग हो रहा है, वहां मिट्टी से आर्गेनिक कार्बन तेजी से घट रहा है। विशेष रूप से हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में विज्ञानिक उपयोग के बावजूद उर्वरकों की अधिकता ने मिट्टी की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
अध्ययन में चेताया गया है कि बढ़ता तापमान आने वाले वर्षों में मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन को और कम कर सकता है। इससे न केवल मिट्टी की सेहत पर असर पड़ेगा बल्कि कार्बन क्रेडिट, भूमि क्षरण के आंकलन और ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
अगर अभी मिट्टी की सेहत पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाले वर्षों में खाद्यान्न उत्पादन पर सीधा असर पड़ेगा। संतुलित उर्वरक उपयोग, फसल अवशेष प्रबंधन और जैविक पदार्थों की मात्रा बढ़ाना ही समाधान है। - डॉ. अरविंद कुमार शुक्ला, कुलगुरु, राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर