
नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ में डॉ. भीमराव आंबेडकर की प्रतिमा लगाने के मुद्दे ने एक नया राजनीतिक मोड़ ले लिया है। प्रतिमा स्थापना को लेकर न्यायालय में अब तक निर्णय नहीं हो पाया है, लेकिन शहर में अब संविधान निर्माण को लेकर एक नई बहस खड़ी हो गई है।
शहर के प्रमुख चौराहों पर हाल ही में लगे होर्डिंग्स में संविधान निर्माण में डॉ. आंबेडकर की भूमिका पर परोक्ष रूप से सवाल उठाते हुए कर्नाटक के बीएन राव को प्रमुख शिल्पकार बताया गया है। इन होर्डिंग्स में साफ लिखा गया है कि संविधान निर्माण अनेक विभूतियों का योगदान है, फिर एक व्यक्ति का गुणगान क्यों? यह पोस्टर सामाजिक न्याय रक्षा मोर्चा ने लगाए गए हैं, जो पहले एट्रोसिटी एक्ट के विरोध में सामने आया था।
इन होर्डिंग्स में डॉ राजेंद्र प्रसाद, सरदार वल्लभभाई पटेल और बीएन राव के छाया चित्र लगाए गए हैं। सवाल उठाया गया है कि संविधान के अनुच्छेदों को लिखने वाले बीएन राव जैसे बुद्धिजीवियों को क्यों भुला दिया गया? मोर्चा का दावा है कि लोगों को यह बताना जरूरी है कि संविधान किसी एक व्यक्ति का नहीं है। यह कई महान लोगों का संयुक्त योगदान है।
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मंच से बोलते हुए बीएन राव के नाम पर उठी बहस को "आंबेडकर विरोधियों का नया प्रपंच" बताया। उन्होंने कहा कि कुछ समय पहले दिल्ली में एक कार्यक्रम में बीएन राव के छाया चित्र बांटे गए, जिसके बाद उन्होंने खुद गूगल पर राव के बारे में सर्च कर जानकारी जुटाई। उनका इशारा साफतौर पर आरएसएस की ओर था।
जहां एक ओर कांग्रेस और डीएमके ने मंच साझा किया, वहीं भीम आर्मी और आजाद समाज पार्टी ने इस कार्यक्रम से दूरी बनाए रखी। हालांकि, ये संगठन अब भी मूर्ति स्थापना को लेकर लगातार सक्रिय हैं। इसे दलित अस्मिता से जोड़कर देख रहे हैं।
सामाजिक न्याय रक्षा मोर्चा के सचिव अमित दुबे का कहना है कि उनका उद्देश्य किसी की छवि को धूमिल करना नहीं है। लोगों को जागरूक करना है कि संविधान निर्माण में केवल डॉ. आंबेडकर ही नहीं, बल्कि बीएन राव जैसे कई अन्य विद्वानों का भी योगदान रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि मोर्चा 2018 में एट्रोसिटी एक्ट के विरोध के समय बना था।