महेश गुप्ता, नईदुनिया, ग्वालियर। संयुक्त परिवारों के टूटने के इस दौर में अगर कोई परिवार एक ही छत के नीचे, एक ही रसोई और एक ही व्यवसाय में मिल-जुलकर जीवन जी रहा हो, तो वह निश्चित रूप से समाज के लिए एक मिसाल है।
ग्वालियर की एडवोकेट और समाजसेवी पारुल अग्रवाल का परिवार इसी मिसाल को जीता है। न सिर्फ पारिवारिक समर्पण, बल्कि महिलाओं की सक्रियता और व्यवसाय में भागीदारी भी इस घर की पहचान है।
शिवपुरी में एक संयुक्त परिवार में पली-बढ़ी पारुल की यही ख्वाहिश थी कि उनका ससुराल भी वैसा ही हो, जहां सब साथ रहें, साथ खाएं, साथ हंसें। 2007 में जब उनकी शादी ग्वालियर के जवाहर कॉलोनी में हुई, तो उन्हें एक भरा-पूरा संयुक्त परिवार मिला। सबसे खास बात - उन्हें ननद नहीं मिली, लेकिन जिठानी रुचि ने बहन का प्यार दिया।
घर में सर्वेंट हैं, फिर भी पारुल और उनकी जिठानी खुद किचन का जिम्मा संभालती हैं। हर त्योहार, हर रोजमर्रा के खाने का स्वाद उनके हाथों से ही आता है। दोनों न सिर्फ घर, बल्कि अपने-अपने सामाजिक संगठनों में भी एक्टिव हैं। पारुल चैंबर ऑफ कॉमर्स, अग्रवाल महिला मंडल, अचलेश्वर मंदिर ट्रस्ट और लायंस क्लब से जुड़ी हैं।
पारुल के पति संदीप अग्रवाल और जेठ प्रदीप अग्रवाल मिलकर अपने पुश्तैनी टायर व्यवसाय को संभालते हैं। यह व्यवसाय पहले पिता राजेंद्र अग्रवाल देखते थे और अब दोनों बेटे इसे आधुनिक तरीके से आगे बढ़ा रहे हैं। हालांकि राजेंद्र अब व्यापार में नहीं हैं, पर घर के बड़े फैसले आज भी वही लेते हैं।
पारुल की दो बेटियां हैं - प्रियांशी (कक्षा 12वीं) और मायरा (कक्षा 6ठी)। पारुल बताती हैं कि बेटियां कब बड़ी हो गईं, पता ही नहीं चला, क्योंकि उनकी परवरिश में मेरी सासू मां ने हमेशा मुझे सहारा दिया।
पारुल मानती हैं कि संयुक्त परिवार में रहकर उन्होंने केवल सहयोग ही नहीं, बल्कि अनुशासन और परंपराओं का सम्मान करना भी सीखा है। ससुर का एक ही मूलमंत्र है कि बड़ों का आदर करो और अपनी मर्यादा में रहो।