
होशंगाबाद। कामाख्या गार्डन में आयोजित भागवत कथा में द्वितीय दिवस की कथा सुनाते हुए भागवत भूषण आचार्य पुष्कर परसाई ने भक्तों को संबोधित करते हुए कहा कि श्रीमद् भागवत भक्तिज्ञान और वैराग्य का संगम है। 18 पुराणों में मात्र भागवत पुराण के आगे ही श्रीमद् शब्द लगाया जाता है यह एक मात्र ऐसा ग्रन्थ है जिससे ज्ञान भक्ति और वैराग्य की प्राप्ति होती है ।इसके पश्चात आचार्य ने परीक्षित प्राप्त श्राप की कथा सुनाते हुए कलयुग के प्रभाव व कलयुग में लोगों के आचरण व व्यवहार पर प्रकाश डाला। बताया कि कलयुग प्रभाव से बचने के लिए भगवन्नाम स्मरण व कीर्तन ही सर्वश्रेष्ठ साधन है । गौकर्ण व धुन्धुकारी का वृतान्त सुनाते हुए आचार्य ने बताया कि गौकर्ण जी ने अपने भाई धुुंधकारी को प्रेत योनि से मुक्ति दिलवाने के लिए सात दिन तक श्रीमद् भागवत कथा श्रवण करायी जिसके प्रभाव से सातवें दिन धुंधकारी को प्रेत योनि से मुक्ति मिली। आचार्य ने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा भगवान श्रीहरि का शब्दात्मक श्रीविग्रह है जो मनुष्य को मृत्यु के भय से अभय प्रदान करता है। कुंती स्तुति में आचार्य श्री ने बताया कि परिस्थितियों को सुधारने का आग्रह छोड कर स्वीकारने का भाव आरंभ कर देना चाहिये ।
भोथ्तक विज्ञान पहले जानता है फिर मानता है
उन्होने कथा में कहा कि भौतिक विज्ञान पहले जानता है फिर मानता है किन्तु आध्यात्म विज्ञान पहले मानता है फिर जानता है । श्रीराम का दृष्टांत देते कहा कि पिता की आज्ञा पालन को उन्होंने प्राथमिकता दी थी । नमन की व्याख्या करते हुए उन्होंने बताया कि न मन की भावना पैदा होते ही इच्छा चाह, कामना नही रही । संकल्प का अर्थ ही ईश्वर प्रेरित सभी कार्य है । उन्होंने कहा कि मनुष्य को मृत्यु के समय तक संसार में प्रवृत रहना चाहिये यहा तक कि शमशान में भी प्रवृत रहना चाहिये ।