पिपरिया,नवदुनिया न्यूज। नागपंचमी पर सोमवार को पचमढ़ी में नागराज के दर्शन करने लगभग एक लाख भक्त पहुंचेंगे। श्रद्धालुओं का यह सैलाब नागद्वारी मेला के लिए पचमढ़ी से रवाना हो गया है। पचमढ़ी की खूबसूरत पहाड़ियों में बम-बम के जयकारे सुनाई दे रहे हैं।
सभी उम्र के लोग भक्ति में डूबे इस यात्रा में शामिल हैं। दुर्गम पहाड़ियों, सकरे और फिसलन वाले रास्ते के बाद भी यहां लोगों का उत्साह और आस्था देखते ही बनती है। आदिवासी समुदाय में नागद्वारी यात्रा को अमरनाथ यात्रा की तरह महत्व दिया जाता है। नाग देवता के दर्शन के लिए भक्तों को करीब 14 कि मी से ज्यादा पैदल चलना पड़ता है ।
नागद्वारी यात्रा के लिए दूर-दूर से लोग पहले पचमढ़ी पहुंचते हैं। वहां से जलगली पहुंचते हैं। यह वो स्थान है जहां से नागद्वारी की यात्रा शुरू होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो भक्तों की अपने आराध्य तक पहुंचने के लिए असल परीक्षा शुरू होती है। उसके बाद गुप्तगंगा चित्रशाला चिंतामन स्वर्गद्वार और पश्चिमद्वार का रास्ता तय कर लोग नागद्वारी मंदिर पहुंचते हैं। नागदेवता के दर्शन कर मन्नत मांगते हैं। ऐसा माना जाता है यहां मांगी गई हर मुराद नागदेवता पूरी करते हैं।
ये है लोककथा कि वदंती
नागद्वार के संबंध में एक लोक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि छिंदवाड़ा जिले की सौंसर तहसील के बरडी ग्राम में हेवतराम और उनकी पत्नी मैनारानी रहती थीं। इनके घर में कोई संतान नहीं थी। दोनों ने नागपंचमी के दिन नागद्वार जाकर नागदेवता से मन्नत मांगी की संतान प्राप्ति पर सोने की सींक से नागदेवता के आंखों में काजल लगाएंगी।
नागदेवता के प्रताप से उनके घर में पुत्र की प्राप्ति हुई और इस पुत्र का नाम श्रावण रखा गया। बाद में यह दंपती अपने वचन को भूल गया। नागदेवता ने सपने में आकर दंपती को याद दिलाया तो वे अगले वर्ष नागद्वार पहुंचे। नागदेवता जब विशाल रूप में मैनारानी के सामने आए तो वह भयभीत हो गईं और अपना वचन पूर्ण नहीं कर पाईं।
नागदेवता ने कु छ देर प्रतीक्षा के बाद क्रोधित होकर पुत्र श्रावण को डस लिया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। मैनारानी ने सर पटक- पटक कर वहीं प्राण त्याग दिए। नागद्वार के समीप ही श्रावण की समाधि बना दी गई। तभी से यहां हर साल नागपंचमी पर श्रावण मेला लगता है। लेकि न जानकार इसे मात्र कि वंदती बताते हैं।
दुर्गम पहाड़ी पर कठिन यात्रा कर पहुंचते हैं भक्त
यह यात्रा इसलिए भी कठिन है कि नागद्वारी मेला क्षेत्र का इलाका सतपुड़ा टाइगर रिजर्व क्षेत्र में आता है। जिसके कारण यहां कि सी भी प्रकार का निर्माण प्रतिबंधित है। मेला समिति अस्थाई तौर पर पहाड़ों पर लोहे की सीढ़ीं लगाकर भक्तों के लिए मार्गों का निर्माण करती है। कई पीढ़ियों से चली आ रही इस यात्रा को अपनी जान जोखिम में डालकर यात्रा को पूरी करते हैं। कई बार तो लोगों के गिरने फिसलने से चोट भी लग जाती है। बारिश यात्रा का मुख्य भाग है अगर जोरदार बारिश नहीं होती तो यात्रा को प्रशासन को बीच में ही रोकना पड़ता है। इस बार बारिश देरी से प्रारंभ होने के कारण यात्रा में देरी हुई है।
सभी इंतजाम किए हैं
पचमढ़ी में गंदगी न फै ले और वातावरण स्वच्छ बना रहे इसके लिए प्रशासन ने सभी इंतजाम कि ए हैं। बारिश होने पर ही यात्रा सुचारु रूप से जारी रह सकती है। मंडलों को प्रवेश दिया जा चुका है। भक्तों के लिए नागद्वार के द्वार खोल दिए गए हैं। - मदन रघुवंशी, एसडीएम