नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान ने 413 ड्रोन और कई मिसाइलों से भारत की सीमा पर हमला किया था, लेकिन भारतीय सेना ने सभी को हवा में नष्ट कर देश की ताकत और तकनीक का लोहा मनवाया। इन्हीं घटनाओं से प्रेरणा लेकर देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के इंस्टिट्यूट आफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलाजी (आइईटी) के विद्यार्थियों ने भारतीय सेना के लिए दो उन्नत ड्रोन तैयार किए हैं।
आइईटी प्रबंधन के मुताबिक भारतीय सेना के सहयोग से विद्यार्थियों ने एक छोटे डिवाइस से दो उन्नत ड्रोन विकसित किए हैं। इन्हें बनाने में महज 20-25 दिन का समय लगा है। विद्यार्थियों का कहना है कि प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य भारतीय सेना की ड्रोन क्षमताओं को और मजबूत करना है।
भारतीय सेना की तरफ से विशेष प्रकार का ड्रोन बनाने का प्रोजेक्ट मिला था। बकायदा इसके लिए सेना की तरफ से पूरा खर्च उठाया गया है। आइईटी मैकेनिकल ब्रांच के अंशुमन शुक्ला-अखिलेश सिंह राठौर और इलेक्ट्रानिक एंड टेली कम्युनिकेशन के अभिजीत पटेल ने प्रोजेक्ट पर काम किया है। मेरठ आर्मी कैंट में प्रोजेक्ट अधिकारी कमांडिंग लेफ्टिनेंट कर्नल नितिन वर्मा (808 वर्कशाप, 609 ईएमई बटालियन) ने ड्रोन की डिजाइन को लेकर मार्गदर्शन किया है, जिसमें कमिकाज और सर्विलांस ड्रोन शामिल हैं।
छात्रों ने बताया कि सेना ने विशेष प्रोजेक्ट दिया था और पूरा खर्च भी उठाया। इसके तहत उन्होंने दो अलग-अलग ड्रोन बनाए। पहला कमिकाज ड्रोन है, दुश्मन के इलाके में जाकर तय लक्ष्य पर हमला करता है और ब्लास्ट के साथ खुद भी नष्ट हो जाता है। इसकी रेंज 5 किमी है और यह 2 किलो तक का पेलोड ले सकता है। जबकि दूसरा सर्विलांस ड्रोन बनाया है, जो नष्ट स्थान की निगरानी कर डेटा और सूचना जुटाता है। इसमें नाइट विज़न कैमरा लगा है, जिससे यह रात में भी मिशन पूरा कर सकता है। इसकी रेंज 10 किमी तक है।
दोनों ड्रोन की स्पीड लगभग 180 किमी प्रति घंटा है और इन्हें तैयार करने में छात्रों को सिर्फ 20-25 दिन लगे।
दोनों ड्रोन में एक सिम कार्ड इंस्टाल है, जिसके जरिए दूर से सक्रिय करने की व्यवस्था बताई गई।
सर्विलांस ड्रोन में नाइट-विज़न कैमरा लगा हुआ है और इसे दूरी पर निगरानी के लिए डिज़ाइन किया गया है।
कमिकाज ड्रोन को लक्षित मिशन के लिए तैयार किया गया है और यह निर्धारित आवश्यकताओं के अनुसार पेलोड कैरी कर सकता है।
प्रोजेक्ट से जुड़े अधिकारियों ने साफ किया कि यह सिस्टम सिर्फ सेना की अनुमति और नियंत्रित परिस्थितियों में ही इस्तेमाल होगा। सभी परीक्षण सैन्य मानकों और सुरक्षा प्रोटोकाल के अनुसार किए गए हैं।
अब इन ड्रोन का आगे मूल्यांकन और परख होगी। परिणामों के आधार पर इन्हें और उन्नत बनाया जाएगा। अधिकारियों का कहना है कि तकनीकी प्रगति के साथ-साथ नैतिक और सुरक्षा मानकों का पालन अनिवार्य रहेगा।
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मैकेनिकल विभाग के प्रो. अशेष तिवारी ने बताया कि इस तकनीक की प्रेरणा हाल ही में दुनिया भर में हुए युद्धों से मिली। आपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय सेना की ड्रोन क्षमताओं को और मजबूत करने के उद्देश्य से यह प्रोजेक्ट तैयार किया गया। इसमें भारतीय सेना का अहम मार्गदर्शन रहा है।