नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर Father;s Day 2025: पिता का रिश्ता अनमोल होता है। पिता अपनी तकलीफों को दरकिनार कर अपने बच्चों के लिए सुविधाएं जुटाने के यत्न करते हैं। उन्हें चाहे कोई भी दिक्कतें आए, वे अपने बच्चों पर मुश्किलों की कोई आंच नहीं आने देते हैं। पिता सिर्फ एक रिश्ता नहीं, बल्कि एक भावना है, जो हर बच्चे के दिल में उम्मीद का दीप जलाती है। एक पिता का होना सिर्फ खून का रिश्ता नहीं होता, यह भावनाओं का ऐसा ताना-बाना है जिसमें त्याग, और अनकही जिम्मेदारियों की कहानियां छिपी होती हैं।
फादर्स डे के इस खास मौके पर, हम आपको उन अनमोल किरदारों से रूबरू कराते हैं जिन्होंने अपने खून से नहीं, लेकिन दिल से पितृत्व की मिसाल गढ़ी। किसी ने एक पिता की तरह अनाथ बच्ची की शादी करवाई, तो किसी ने शिक्षा का जिम्मा उठाया। तो वहीं, किसी ने मूक-बधिर बच्चों को संरक्षण देकर उनके सपनों को नई ऊंचाइयां दी।
इंदौर पुलिस में प्रधान आरक्षक के पद पर तैनात किशन सिंह चौहान अनाथ और मूक बधिर बच्चों के पिता की भूमिका में पिछले 13 वर्षों से उनकी शादी की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। अब तक 750 से अधिक अनाथ, मूक बधिर और गरीब युवतियों की शादी करवा चुके हैं। एक पिता की तरह ही वे इन युवतियों का कन्यादान भी खुद ही करते हैं और शादी के बाद जब युवतियां उनके घर आती हैं, तो एक पिता की तरह ही वे उनका स्वागत कर युवती और उसके पति को शगुन देते हैं।
वे बताते हैं कि वे हर साल गायत्री जयंती पर हरिद्वार जाते हैं। 13 वर्ष पूर्व यहीं गायत्री मंदिर में गरीब बच्चियों का विवाह देखकर काफी प्रभावित हुए और खुद भी ऐसी बच्चियों का विवाह करवाने की ठान ली। पहली बार 10 युवतियों का विवाह करवाया। इसमें दो ऐसी युवतियां थीं, जिनके पिता का निधन हो चुका था। उनके लिए रिश्ता भी उन्होंने ही ढूंढा था। वे अब तक करीब 90 ऐसी युवतियों की शादी करवा चुके हैं, जो अनाथ हैं। इनमें से कई युवतियां उन्हें पिता के रूप में देखती है और हर त्योहार पर घर भी आती हैं।
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बच्चों के जीवन को आगे बढ़ाने में शिक्षा अहम कड़ी होती है, लेकिन अक्सर अनाथ और गरीब तबके के बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। राजन रानाडे ऐसे ही अनाथ और गरीब बच्चों के जीवन में शिक्षा का उजाला भर रहे हैं। राजन बताते हैं बैंक से रिटायरमेंट के बाद सामाजिक कार्य में सक्रिय हुए। इस दौरान देखा कि महालक्ष्मी नगर के पास स्थित बस्तियों की बच्चियों के पास शिक्षा का कोई स्रोत नहीं है। इनमें से कुछ बच्चियों के पिता नहीं है, तो कुछ बच्चियों के पिता नशा के कारण इनकी शिक्षा पर ध्यान नहीं दे रहे थे।
तब उन्होंने इन बच्चियों को शिक्षा देने का बीड़ा उठाया और 15 बच्चियों को पढ़ाने से शुरुआत की। इसके बाद इनका सरकारी स्कूल में एडमिशन करवाया। वे बच्चियों को एक किराए के भवन में पढ़ाते हैं। वर्तमान में 100 से अधिक अनाथ और जरूरतमंद बच्चियों को पढ़ा रहे हैं। साथ ही आठ शिक्षकों को भी नौकरी पर रखा है और बच्चियों को लाने ले जाने के लिए एक वाहन भी रखा है। इस पर हर माह करीब डेढ़ लाख रुपये का खर्च आता है। इसके लिए पैसे हर माह पेंशन में से देते हैं और कुछ जनसहयोग भी प्राप्त होता है। फिलहाल तीन बस्तियों की बच्चियों को पढ़ा रहे हैं।
मूक बधिक बच्चे अपनी समस्याएं किसी को नहीं बता पाते। माता-पिता या इनमें से कोई एक के न होने के कारण भी उनके आश्रय पर संकट खड़ा हो जाता है। ऐसे ही बच्चों के पालक के रूप में ज्ञानेंद्र पुरोहित भी कार्य कर रहे हैं। वे बताते हैं कि उनके भाई भी मूक बधिर थे, लेकिन एक हादसे में उनका निधन हो गया।
इसके बाद उन्होंने मूक बधिरों के लिए कार्य की शुरुआत की। इसी क्रम में उन्होंने एक ऐसा केंद्र खोला जहां उन मूक बधिक बच्चों को आश्रय मिल सके, जो अनाथ है। फिलहाल इंदौर स्थित केंद्र में करीब 125 मूक बधिर बच्चे रह रहे हैं। इसके साथ ही धार और अलीराजपुर में भी उनके केंद्र हैं। यहां इन बच्चों के शिक्षा और रहने की व्यवस्था वे खुद करते हैं।