
इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। छह साल से ज्यादा समय से पूरे देश में वर्ल्ड रिकॉर्ड के प्रमाण-पत्र बांट रही 'गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' न तो कोई संस्था है न ही किसी और देश में इसका कोई दफ्तर है। यह खुलासा इंदौर पुलिस की क्राइम ब्रांच की जांच में हुआ है। गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स असल में एक व्यक्ति द्वारा किसी दुकान की तरह बनाई गई प्रोप्रायटरशिप फर्म निकली, जो इंदौर श्रम विभाग से गुमाश्ता लाइसेंस और नगर निगम के रजिस्ट्रेशन के दम पर प्रमाण-पत्र बांट रही है। पुलिस भी इसे सीधे तौर पर अपराध नहीं मान रही है।
पुलिस ने मध्यप्रदेश कांग्रेस के सचिव राकेशसिंह यादव की शिकायत पर जांच बैठाई थी। यादव ने मार्च में गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के खिलाफ शिकायत करते हुए आरोप लगाया था कि एक व्यक्ति पैसे लेकर मनमाने तरीके से वर्ल्ड रिकॉर्ड के प्रमाण-पत्र बांटकर लोगों को ठग रहा है। इसकी वेबसाइट पर दिए गए अमेरिका व अन्य महाद्वीपों के दफ्तर के पते और जिस विदेशी व्यक्ति को इसका चेयरमैन बताया जा रहा है, वह फर्जी है। शिकायत में बीती भाजपा सरकार को भी निशाने पर लिया गया था।
आरोप लगाया था कि तमाम सरकारी आयोजनों में भी ऐसे प्रमाण-पत्र सरकार ने बंटवाकर लोगों की आंखों में धूल झोंकी। शंका जताई गई कि लोगों से रिकॉर्ड बनवाने के एवज में लिए पैसों को हवाला से इधर-उधर भी किया गया। इस पर जांच कर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अमरेंद्र सिंह ने आठ बिंदुओं वाली जांच रिपोर्ट एसएसपी को सौंप दी है। क्राइम ब्रांच ने माना कि न तो इस संस्था का कोई अंतरराष्ट्रीय संबंध है, न ही अन्य किसी देश में कोई दफ्तर। यहां तक कि संस्था के चेयरमैन के तौर पर वेबसाइट पर डाले गए अमेरिकी व्यक्ति का ब्योरा भी फर्जी है।
फोन पर सौंप दी संस्था
गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स का कर्ताधर्ता मनीष विश्नोई है। इंदौर के पलासिया स्थित फ्लैट के पते से इसका नगर निगम में रजिस्ट्रेशन और गुमाश्ता लाइसेंस बनवाया गया, लेकिन अब दफ्तर नोएडा (उप्र) में चलाया जा रहा है। विश्नोई ने क्राइम ब्रांच को दिए बयान में कबूल किया कि एमबीडी शेर नामक जिस व्यक्ति को गोल्डन बुक का चेयरमैन और संस्थापक बताते हुए वेबसाइट पर उल्लेख डाला गया है, उससे न तो कभी वह मिला और न ऐसे किसी व्यक्ति को जानता है। विश्नोई ने पुलिस से कहा कि 2012 में फोन पर अमेरिका के उस नागरिक ने उसे गोल्डन बुक मालिकी हक सौंप दिया था। संस्था के विदेश में जो दफ्तर बताए गए हैं, उनके बारे में विश्नोई को भी नहीं पता है।
अब तक दो हजार लोगों को बांटे रिकॉर्ड
विश्नोई ने पुलिस को बयान दिया कि अब तक करीब दो हजार लोगों को रिकॉर्ड बांटे गए हैं। रिपोर्ट में निष्कर्ष के तौर पर सिंह ने यह तो माना कि संस्था के संस्थापक, विदेश के पते जैसी तमाम जानकारी गलत है, इस बारे में कोई प्रमाण संचालक नहीं दे सका। हालांकि उन्होंने अपनी ओर से इसे संज्ञेय अपराध नहीं माना। उन्होंने लिखा कि शिकायत करने वाले यादव इससे प्रभावित पक्ष नहीं हैं। रिपोर्ट के बाद एसएसपी रुचिवर्धन मिश्र ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को संस्था के लेनदेन और हवाला से जुड़े बिंदुओं पर जांच के लिए पत्र लिख दिया है।
पुलिस बचा रही
जांच में फर्जीवाड़ा साफ हो चुका है लेकिन क्राइम ब्रांच 'गोल्डन बुक' चलाने वाले व्यक्ति को बचाने में लगी है। मामले पर प्रकरण दर्ज होना था, यह वर्ल्ड रिकॉर्ड के नाम पर लोगों से की गई ठगी है। हमने मुख्यमंत्री को शिकायत भेज अधूरी जांच करने वाले पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग रखी है। राकेश सिंह यादव, सचिव, प्रदेश कांग्रेस
फरियादी नहीं
असल में इसमें कोई भी ऐसा फरियादी सामने नहीं आया जो कहे कि मेरे साथ ठगी हुई है। यह कुछ इस तरह का मामला है कि व्यक्ति प्रमाण-पत्र दे रहा है और सामने वाला फीस देकर उसे खरीद रहा है। सामने वाला न तो कोई मान्यता का दावा कर रहा है, न सरकारी एजेंसी का नाम उपयोग कर रहा है। प्रकरण दर्ज होने का सीधे तौर पर आधार नहीं बनता। अमरेंद्र सिंह, एडिशनल एसपी, क्राइम ब्रांच
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