नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। आज के दौर में स्वास्थ्य सेवाओं की लागत इतनी ज्यादा हो गई है कि अचानक बीमार होने या दुर्घटना की स्थिति में अस्पताल का खर्च आम आदमी के लिए भारी पड़ सकता है। ऐसे समय में मेडिक्लेम पॉलिसी एक राहत की तरह काम करती है, लेकिन जब इलाज के बाद बीमा क्लेम को अस्वीकार कर दिया जाता है, तो व्यक्ति असहाय महसूस करता है। ऐसे में जानना जरूरी है कि अपने अधिकारों की रक्षा कैसे करें और सही प्रोसेस अपनाकर अपनी शिकायत को किस तरह आगे बढ़ाया जाए।
स्वास्थ्य बीमा यानी मेडिक्लेम पॉलिसी आज के समय में हर व्यक्ति की जरूरत बन गई है। यह पॉलिसी अस्पताल में भर्ती होने या इलाज की स्थिति में बीमा धारक को आर्थिक सुरक्षा देती है। लेकिन कई बार देखा गया है कि लोग प्रीमियम भरने के बावजूद जब क्लेम करते हैं, तो उसे रिजेक्ट कर दिया जाता है। अगर आपके साथ भी ऐसा हुआ है, तो घबराने की जरूरत नहीं है। आप बीमा कंपनी और संबंधित विभागों में शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
अगर आपको लगता है कि क्लेम रिजेक्ट करना गलत है और आपने सभी नियमों का पालन किया है, तो आप सबसे पहले बीमा कंपनी में लिखित शिकायत करें। अगर वहां समाधान नहीं मिलता है, तो इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (IRDAI) के अंतर्गत आने वाले इंश्योरेंस ओम्बड्समैन के पास ऑनलाइन शिकायत दर्ज की जा सकती है। इसके अलावा आप उपभोक्ता फोरम में भी केस दर्ज करा सकते हैं।
बीमा कंपनी को आपकी शिकायत का समाधान 30 दिनों के भीतर देना होता है। अगर वे समय पर जवाब नहीं देते हैं या टालमटोल करते हैं, तो यह उपभोक्ता अधिकारों का उल्लंघन माना जाएगा।
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यदि पॉलिसी लेते समय किसी बीमारी जैसे डायबिटीज, ब्लड प्रेशर या थायराइड की जानकारी दी गई हो, तो ऐसी बीमारियों के इलाज का खर्च चार साल तक कवर नहीं किया जाता। इसे ‘वेटिंग पीरियड’ कहा जाता है। जानकारी के अभाव में लोग इन बीमारियों के लिए क्लेम करते हैं, जो अस्वीकार कर दिया जाता है।
कैशलेस सुविधा तभी मिलती है जब बीमा कंपनी के नेटवर्क अस्पतालों में इलाज हो। गैर-नेटवर्क अस्पताल में पहले खर्च खुद करना पड़ता है और बाद में क्लेम करना होता है।
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