
इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। रीढ़ की हड्डी में स्कोलियोसिस (मेरु वक्रता) नामक बीमारी से पीड़ित रही इंदौर की नातिन और मुंबई की छात्रा स्तुति डागा ने प्रेरणादायक पहल की है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों और उनके माता-पिता को सही समय पर इसकी जानकारी मिले इसलिए पांच भाषाओं में बीमारी से जुड़ी जानकारी वाले ब्रोशर प्रकाशित कर कार्यक्रम आयोजित कर देशभर में वितरित कर रही है। इतना ही नहीं स्वयं के स्वास्थ्य होने के बाद अब तक वे 12 बच्चों का आपरेशन कर उन्हें रोग से मुक्ति दिला चुकी है।
अपने जन जागरण अभियान के तहत इंदौर आई स्तुति कहती है कि वे तैराक बनना चाहती थी लेकिन उन्हें 12 वर्ष की उम्र में पता चला कि वे स्कोलियोसिस नामक बीमारी से पीड़ित हैं। यह बीमारी रीढ़ की हड्डी में वक्रता (कर्व) के कारण होती है। हांलाकि इस बीमारी से जीवन को कोई खतरा नहीं होता है लेकिन रीढ़ की हड्डी में टेढ़ापन आ जाने से सामान्य बच्चों की तुलना में ऐसे बच्चों को तैराकी, दौड़ एवं अन्य गतिविधियों में परेशानी और दर्द का अनुभव होता है। स्कोलियोसिस में रीढ़ की हड्डी एक तरफ झुकती है इसलिए इस सीधी रेखा के बजाय रीढ़ की हड्डी का आकार घुमावदार हो जाता है। यह पीड़ा तीन वर्ष तक भुगतने के बाद मैंने 15 वर्ष की आयु में अमेरिका जाकर अपनी सर्जरी करवाई।
हर बालक और उनके अभिभावक नहीं होते सक्षम
इस बीमारी का ज्ञान भी सबको होना चाहिए और इससे बचने के लिए प्रयास भी ऐसे होने चाहिए कि वे हर किसी की पहुंच में रहें। वे खुद तो चूंकि आर्थिक रूप से सक्षम थीं इसलिए उन्होंने अपना इलाज माता-पिता के सहयोग से करा लिया, लेकिन हर बच्चा और हर पालक आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होता। बीमारी की जानकारी देने के लिए वे तीन दिवसीय प्रवास पर इंदौर आई थी। इस दौरान उन्होंने लक्ष्मी माहेश्वरी महिला संगठन, गीता भवन रहवासी महिला संगठन, श्री हरि सत्संग महिला समिति, बड़ी ग्वालटोली स्थित हनुमान बस्ती राम मंदिर, शबरी बस्ती, इंदिरा नगर, संविद नगर सहित विभिन्न मोहल्लों में जाकर बच्चों एवं पालकों को इस बीमारी, रोकथाम के उपायों एवं बचाव के तरीकों की जानकारी दी। साथ ही सभी संगठनों से आग्रह किया है कि उनकी नजर में यदि कोई भी बच्चा-बच्ची इस बीमारी से पीड़ित हों तो उन्हें अवश्य सूचित करें। इस दौरान इंदौर में रहने वाली उनकी नानी कमल राठी भी उनके साथ थी।
पांच भाषाओं में मिले बीमारी की जानकारी इसके लिए ब्रोशर प्रकाशित किया
स्तुति ने अब पांच भाषाओं में स्कोलियोसिस के बारे में एक ब्रोशर और अन्य सामग्री का प्रकाशन कर देश के सभी बड़े शहरों में उसका वितरण शुरू किया है। यह बीमारी लड़कों के मुकाबले लड़कियों में अधिक पाई जाती है। बीमारी का सही-सही कारण तो अब तक चिकित्सा विज्ञान नहीं पता लगा पाया है लेकिन यदि समय पर इसका इलाज नहीं कराया जाए तो आगे चलकर यह बीमारी शरीर में विकृति व विकलांगता पैदा कर सकती है। कई बार दुर्घटनाओं के कारण भी यह बीमारी हो सकती है। अधिकतर 13 से 18 वर्ष की आयु समुह के बच्चों में इस बीमारी के लक्षण देखे जा सकते हैं।
ब्रोशर की मदद से अनेक माता-पिता स्कोलियोसिस के बारे में जानकारी लेकर अपने बच्चों को इस बीमारी से मुक्त करा सकेंगे। स्तुति चाहती है कि उनकी तरह अन्य बच्चों के सपने चकनाचूर नहीं हों और हर बच्चे को समय पर उचित मदद मिल सके। उन्होंने बताया कि उनका एक सह विद्यार्थी शिव कपानी स्कोलियोसिस से पीड़ित बच्चों की मदद के लिए पिछले दो वर्षों से धन जुटाने में भी सहयोग कर रहा हैं। वे अब तक मुंबई के वाडिया हास्पिटल में ऐसे बारह बच्चों के उपचार में मदद कर चुकी हैं।