- होलकर साइंस कॉलेज द्वारा ऑनलाइन राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
इंदौर (नईदुनिया रिपोर्टर)। जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी और आकाश को भारतीय संस्कृति में पंच विनायक कहा गया है। जब वे अपने प्रकृत रूप में होते हैं तो जीवन को पोषित करते हैं और जब विकृत होकर असंतुलित हो जाते हैं तो जीवन के विनाश का कारण बन जाते हैं। कोविड-19 ने हमें सिखाया है कि हम प्रकृति के अनुरूप जीवनशैली का विकास करें। हमारी संस्कृति और पारंपरिक विश्वासों का संवर्धन करें और उन्हें व्यवहार में लाते हुए अपने सुरक्षित भविष्य का रास्ता चुनें। यह कहना है डॉ. मनमोहन श्रीवास्तव का। विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में होलकर साइंस कॉलेज द्वारा 27 मई से दो जून तक कोविड-19, पर्यावरण और प्रकृति समन्वय विषय पर ऑनलाइन राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें विज्ञान भारती के प्रजातंत्र गंगेले और साइंस इंडिया के राकेश पांडे का विशेष मार्गदर्शन रहा। डॉ. श्रीवास्तव कार्यक्रम के संयोजक थे।
भोजन की आदत को बदलने की जरूरत
डॉ. ओपी जोशी, भावेश पटेल, ओमप्रकाश पाटीदार, डॉ. विभा दुबे, श्वेता सक्सेना और श्वेता प्रकाश ने कोविड-19 की बात करते हुए कहा कि पिछले 10 से 12 सालों में मनुष्य जीवन में प्रवेश करने वाले कई वायरस जैसे स्वाइन फ्लू, सार्स, जीका, एवियन इनफ्लुएंजा आए। उन्होंने कहा कि ऐसा प्रकृति और पर्यावरण के समन्वय को कमजोर करने के परिणाम से हुआ। व्यक्ति को नए सिरे से अपनी भोजन की आदतों को बदलने पर विचार करने की जरूरत है। डॉ. अपर्णा आलिया, डॉ. संदीप आर्य, डॉ. अनीता सोलंकी, डॉ. अंगूरबाला बाफना, डॉ. पी. नायडू, डॉ. सुनील शर्मा, डॉ. कमला शिवानी, डॉ. राम प्रजापति, श्वेता तिवारी और प्रेरणा ने कहा कि कोविड-19 के प्रभाव से बचने के लिए विश्व के सभी देशों द्वारा लॉकडाउन अपनाने के कारण पर्यावरण विशेषतौर पर जल, वायु, ध्वनि और अन्य प्रदूषण में कमी आई है। एयर क्वालिटी इंडेक्स में भी सुधार हुआ है। जो काम क्वोटो प्रोटोकॉल पेरिस जलवायु समझौता और अन्य सम्मेलन आज तक नहीं कर पाए वह कोविड वायरस ने कर दिया। डॉ. धनंजय द्विवेदी ने कहा कि लॉकडाउन के कारण मानवीय गतिविधियों के थमने से बहुत ही सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं। गंगा, यमुना और शिप्रा का जल बेहतर हो गया है।
जल में पाई जानी वाली प्रजातियों को अवसर मिला
डॉ. ज्योति पांडे ने कहा प्राकृतिक सौंदर्य में निखार आया है और अब प्रकृति पहले से ज्यादा आकर्षक लग रही है। डॉ. एसजी जैदी के अनुसार समुद्र सहित सभी जल स्त्रोतों में मानवीय गतिविधियों के थमने से मछली सहित अन्य जलजीवों को फलने-फूलने का एक सुनहरा अवसर मिला है। इससे भविष्य में इनके उत्पादन बढ़ने की संभावना है और कुछ प्रजातियों का संकटकाल कुछ सालों के लिए टल गया है। नमन पटेल ने बताया कि प्रकृति ने इस अवसर का लाभ उठाकर अपने आपको रिचार्ज कर लिया है। डॉ. राकेश पांडे ने कहा कि पर्यावरण से संबंधित नियम-कानून सख्ती से लागू होना चाहिए। इसमें पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1972, वन संरक्षण अधिनियम 1981, जल संरक्षण अधिनियम 1974, वायु अधिनियम 1981, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 का पूरी ईमानदारी और शक्ति के साथ पालन सुरक्षित होना चाहिए।