नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। कई लोग विभिन्न हादसों में आंख, नाक, कान या अंगुली गंवा देते हैं। ऐसे लोग अंगों के बिना आत्मविश्वास को देते हैं और लोगों से दूरी बना लेते हैं। लेकिन ऐसे लोगों में आत्मविश्वास लौटाने का कार्य शासकीय डेंटल कालेज में किया जा रहा है। यह संस्थान प्रदेश का एकमात्र ऐसा शासकीय केंद्र है, जहां मेडिकल ग्रेड सिलिकान से आर्टिफिशियल अंग बनाए जा रहे हैं।
इन नकली अंगों की मदद से लोग न केवल अपना चेहरा या अंग वापस पा रहे हैं बल्कि खोया हुआ आत्मविश्वास भी लौट रहा है। कॉलेज के प्रोस्थोडांटिस्ट विभाग में प्रतिवर्ष 50 से अधिक मरीजों को यह सुविधा मिल रही है। यहां इंदौर के साथ ही प्रदेशभर के मरीज आर्टिफिशियल अंग के लिए आ रहे हैं। इन अंगों का मरीज उपयोग तो नहीं कर सकता है, लेकिन यह बिल्कुल असली की तरह की दिखते हैं।
बता दें कि निजी अस्पतालों में भी आर्टिफिशियल अंग बनाने का कार्य किया जाता है, लेकिन यहां इन अंगों के लिए 15 हजार रूपये तक खर्च आता है। इसके अलावा यदि इमप्लांट करवाते हैं तो यह खर्च लाखों तक पहुंच जाता है। लेकिन शासकीय डेंटल कालेज में सिर्फ 500 रुपये शुल्क लगता है। कम लागत में अंग बनने से आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों को बड़ी राहत मिल रही है। निजी अस्पतालों की महंगी फीस देने में असमर्थ लोग अब यहां आ सकते हैं।
विशेषज्ञों ने बताया कि कालेज में मेडिकल ग्रेड सिलिकान का उपयोग करते हैं। यह सिलिकान पूरी तरह सुरक्षित होता है और इससे किसी प्रकार का इन्फेक्शन नहीं होता। मरीज की त्वचा के रंग से मेल खाता रंग तैयार कर अंगों को बनाया जाता है ताकि यह बिल्कुल प्राकृतिक दिखे। उदाहरण के तौर पर, आंख की प्रोस्थेसिस (कृत्रिम आंख) को इस तरह डिजाइन किया जाता है कि सामान्य आंख से कोई फर्क नजर नहीं आता है। इसी तरह नाक, कान और उंगलियों की प्रोस्थेसिस भी तैयार की जाती है। इसे लगाने के बाद मरीज पहले की तरह सामान्य जीवन जी सकते हैं और समाज में आत्मविश्वास से आगे बढ़ सकते हैं।
कई बार कैंसर के कारण मरीजों के चेहरे का कोई भाग निकालना पड़ता है। ऐसे में प्रोस्थेसिस उनके लिए बड़ी राहत बनती है। नकली नाक सहित अन्य अंग लगने से उनकी बीमारी नजर ही नहीं आती है। इससे वह मानसिक रूप से भी मजबूत हो जाते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर सिखाई जा रही तकनीक अस्पताल में केवल अंग बनाए ही नहीं जा रहे हैं बल्कि शासकीय डेंटल कॉलेज की प्राचार्य व प्रोस्थोडोंटिक्स और इम्पलांटोलाजिस्ट डॉ. अलका गुप्ता द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर इस तकनीक का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
कॉलेज की प्राचार्य डॉ. अलका गुप्ता ने इस बारे में कहा कि देशभर से डेंटल और मेडिकल के विद्यार्थी को वह सीखाती है कि कैसे प्रोस्थेसिस बनाई जाती है और किस तरह से मरीज की जरूरत के अनुसार इसे अनुकूलित किया जाता है। कई मरीजों के कान, नाक, अंगुली नहीं होते हैं। ऐसे मरीजों के लिए प्रोस्थेसिस तैयार की जाती है। आर्टिफिशियल अंग लगने के बाद बिल्कुल त्वचा के रंग के ही बनाए जाते हैं। इन अंगों को लगाया भी जाता है, जिससे मरीजों का आत्मविश्वास लौट आता है।