नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। इंदौर जिले में खेती की दिशा में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों के दुष्प्रभावों को देखते हुए अब किसानों को प्राकृतिक खेती करने के लिए जागरूक किया जा रहा है। आत्मा परियोजना के अधिकारियों द्वारा जिले के 1250 किसानों को प्रोत्साहित कर एक-एक एकड़ में प्राकृतिक खेती कराने का लक्ष्य तय किया गया है। नवाचारी पहल से कई किसान अब तक जुड़ चुके हैं। इस पहल का उद्देश्य रसायन के दुष्प्रभावों से बचाव कर आमजन को शुद्ध और सुरक्षित अनाज उपलब्ध कराना है।
किसानों ने अपने परिवार और आमजन के लिए शुद्ध और रासायनिक रहित अनाज उपलब्ध कराने के लिए प्राकृतिक खेती की तरफ कदम बढ़ाया है। आत्मा योजनान्तर्गत जिले में 1250 एकड़ कृषि भूमि पर प्राकृतिक खेती करने का लक्ष्य तय किया गया है। आत्मा परियोजना संचालक शर्ली थामस का कहना है कि कृषि विभाग द्वारा किसानों की आय बढ़ाने के साथ ही रासायनिक रहित खेती की तरफ अग्रसर किया जा रहा है।
जिले में एक-एक एकड़ में प्राकृतिक खेती शुरू कराई जा रही है। इसके लिए 1250 किसानों को जोड़ा जा रहा है। इससे रासायनिक खेती पर निर्भरता कम होगी। वहीं खेती की उर्वरता भी बनी रहेगी। इससे उपभोक्ताओं को भी बिना रसायन वाला शुद्ध अनाज मिल सकेगा। रायायनिक खेती के कारण मिट्टी की गुणवत्ता खराब हो रही है। वहीं लंबे समय में इसका असर स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है।
यह भी पढ़ें : सिर्फ 2 हफ्ते सोने से पहले पिएं लौंग का पानी, शरीर में होगा ये बड़ा बदलाव
राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के तहत जिले में आत्मा परियोजना के अंतर्गत प्राकृतिक खेती की पहल की गई है। इसके लिए जिले में दस क्लस्टर बनाए गए हैं और प्रत्येक क्लस्टर में 125 किसानों को जोड़ा जा रहा है। प्रारंभ में एक क्लस्टर में सिर्फ तीन पंचायतों को ही शामिल किया जा रहा है।
क्लस्टर में शामिल किसानों के लिए प्रशिक्षण के अलावा बीज, जैविक खाद जैसी सुविधाएं भी विभाग उपलब्ध कराएगा। उत्पादित होने वाली फसल के लिए बाजार की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाएगी, ताकि किसानों को उत्पाद बेचने में कठिनाई न हो।
पहले चरण में 1250 एकड़ में प्राकृतिक खेती करने का लक्ष्य आत्मा परियोजना के माध्यम से लिया गया है। इसमें शत प्रतिशत किसानों को जोड़ने के बाद धीरे-धीरे कृषि भूमि का दायरा बढ़ाया जाएगा। नए क्लस्टर बनाकर जिले के अन्य किसानों को भी इससे जोड़ा जाएगा, ताकि वह भी प्राकृतिक खेती कर सकें।