
Indore News: इंदौर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। कला सिर्फ मनोरंजन ही नहीं करती या सिर्फ पहचान ही नहीं दिलाती, बल्कि यह हमें जीना भी सिखाती है। कला के माध्यम से हममें संस्कार भी आते हैं और अनुशासन का पाठ भी पढ़ना सीखते हैं। यह कला ही है जो गुरु का सम्मान करना सिखाती है और सम्मान भी दिलाती है। निराशा से आशा की ओर ले जाने वाली भी कला ही है। पर हमें कला को आत्मसात करना होगा। केवल करियर बनाने के लिए ही कला का उपयोग करना पर्याप्त नहीं है, कलाकार को उसे जीवन में उतारना भी चाहिए और उससे सीखना भी चाहिए।
यह बात फिल्म और टेलीविजन अभिनेत्री व ख्यात नृत्यांगना सुधा चंद्रन ने कही। सुधा चंद्रन रविवार को इंदौर में थी। इस दौरान नईदुनिया से चर्चा में उन्होंने जीवन के अनुभव साझा किए। सुधा कहती हैं, कला के जरिए जो संस्कार मिले वह ईश्वर का बहुत बड़ा आशीष है। कलाकार यदि कला के गुणों का मर्म समझे और उसे जीवन में अपनाए तो वह कभी आत्महत्या जैसा निर्णय नहीं लेगा।
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सुधा ने कहा, सभी की जिंदगी में परेशानियां आती हैं और हमें उनका डटकर मुकाबला करना चाहिए। मैंने भी यही किया। जब मैं फिल्म इंडस्ट्री में आई तो सात वर्ष तक मुझे काम मिलने का इंतजार करना पड़ा। उन सात वर्षों में मैंने सिर्फ इसी बात पर अमल किया कि यदि किस्मत किसी क्षेत्र में करियर बनाने के लिए लाई है तो आपका वक्त जरूर आएगा।
अभिनेत्री ने कहा, यह जरूरी नहीं कि फिल्म-सीरियल में मुख्य किरदार ही हमेशा प्रभावी हो। कई बार सहयोगी किरदार भी ज्यादा दमदार होते हैं। फिल्म रामलीला में सुप्रिया पाठक, गंगूबाई काठियावाड़ी में सीमा पाहवा, देवदास में किरण खेर, राकी और रानी की प्रेम कहानी में शबाना आजमी-धर्मेंद्र इसके ताजा उदाहरण हैं। यदि मुझे भी इस तरह के दमदार किरदार मिलें तो मैं उसे निभाना चाहूंगी।