Indore News: नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। जिला उपभोक्ता आयोग ने इस टिप्पणी के साथ कि बीमा कंपनी की नहीं बल्कि पालिसीधारक की जिम्मेदारी है कि वह इस बात की पुष्टि कर ले कि प्रीमियम की राशि बीमा कंपनी तक पहुंची है या नहीं, परिवाद निरस्त कर दिया। आयोग ने कहा कि पालिसीधारक द्वारा जारी चेक बैंक से अनादरित होने की सूचना सबसे पहले उसे जारी करने वाले को मिलती है। यह बीमा कंपनी की जिम्मेदारी नहीं है कि वह चेक जारी करने वाले को बताए कि चेक अनादरित हो गया है।
मंगल नगर निवासी हेमंत वैशंपायन ने अपने, पत्नी और बेटे के लिए मेडिक्लेम पालिसी ली थी। यह पालिसी पिछले आठ वर्षों से जारी थी। इसका नवीनीकरण करते हुए उन्होंने 13 फरवरी 2020 को दो चेक नेशनल इंश्योरेंस कंपनी के नाम से जारी किए थे, लेकिन इन चेक का भुगतान बीमा कंपनी को प्राप्त ही नहीं हुआ। इसके चलते बीमा कंपनी ने पालिसियां बंद कर दीं। आठ अगस्त 2020 को बीमा कंपनी से प्राप्त पत्र से परिवादी को इसकी जानकारी लगी।
इस बीच परिवादी के पुत्र की तबीयत खराब होने पर उसे अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। जहां उपचार पर करीब 60 हजार रुपये का खर्च हुआ। चूंकि बीमा कंपनी ने पालिसी बंद कर दी थी, इसलिए इसका भुगतान परिवादी को प्राप्त नहीं हो सका। वैशंपायन ने बीमा कंपनी पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया था। इसमें कहा था कि बीमा कंपनी ने संगमत होकर बीमा पालिसी बंद की है। वह चाहती तो चेक अनादरित होने के तुरंत बाद इसकी सूचना परिवादी को दे सकती थी। परिवादी के बैंक खाते में पर्याप्त राशि होने के बावजूद चेक अनादरित हो गया और उन्हें पता नहीं चला।
बीमा कंपनी की ओर से एडवोकेट संजय मेहरा ने पैरवी करते हुए तर्क रखा कि वर्तमान में बैंक खाते में किसी भी तरह का लेनदेन होने पर तुरंत इसकी सूचना मैसेज के जरिए खाताधारी को मिल जाती है। चेक हस्ताक्षर मिलान नहीं होने की वजह से अनादरित हुआ था। इसके लिए बीमा कंपनी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। आयोग ने सभी पक्षों को सुनने के बाद बीमा कंपनी के पक्ष में परिवाद निरस्त कर दिया।