Tourist Place In MP: झाबुआ-आलीराजपुर का कश्मीर 'कठ्ठीवाड़ा'
Tourist Place In MP: यह एक ऐसा स्थान है जहां अध्यात्म का ध्वज भी लहराता है तो इतिहास की पताका भी लहराती है। गुजरात और मध्य प्रदेश के बीच बसे इस खूबसूरत स्थान का एक रंग यहां की सादगी भी है।
By Sameer Deshpande
Edited By: Sameer Deshpande
Publish Date: Sat, 08 Oct 2022 01:42:22 PM (IST)
Updated Date: Sat, 08 Oct 2022 03:19:28 PM (IST)

Tourist Place In MP: इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। कहने को बेशक झाबुआ-आलीराजपुर जंगल और आदिवासी बहुल क्षेत्र है लेकिन यहां प्रकृति ने अपनी खूबसूरती बिखेरने में कोई कमी नहीं छोड़ी और ऐसी ही एक जगह है कठ्ठीवाड़ा जिसे यहां का कश्मीर भी कहा जाता है। कश्मीर की तरह बेशक यहां बर्फ या झील नहीं है लेकिन पर्वत से घिरे इस स्थान पर झील न सही तो क्या हुआ झरना तो हैं जिसमें इस मौसम में नहाने का मजा लिया जा सकता है और बरसात के दिनों में निहारने का। यह एक ऐसा स्थान है जहां अध्यात्म का ध्वज भी लहराता है तो इतिहास की पताका भी लहराती है। गुजरात और मध्य प्रदेश के बीच बसे इस खूबसूरत स्थान का एक रंग यहां की सादगी भी है।
कैसे पहुंचें
इंदौर से कठ्ठीवाड़ा जाने के कई रास्ते हैं। पहला रास्ता इंदौर से धार, झाबुआ, चंद्रशेखर आजाद नगर (भाभरा) होते हुए कट्ठीवाड़ा पहुंचाता है तो दूसरा रास्ता इंदौर से धार, झाबुआ, कानाकाकड़ होते हुए आबुआ, आलीराजपुर और फिर कठ्ठीवाड़ा पहुंचाता है। तीसरा मार्ग इंदौर से मानपुर, खलघाट, धरमपुरी, मनावर, कुक्षी, आलीराजपुर और फिर कठ्ठीवाड़ा का है। इनमें से चाहें आप किसी भी रास्ते से कठ्ठीवाड़ा जाएं लेकिन आलीराजपुर के बाद जो प्राकृतिक सुंदरता नजर आनी शुरू होगी उसकी बात ही कुछ और है। सड़क के दोनों ओर सघन वन पर्यटकों की अगवानी करते हैं।
झरने के समीप शांति का अनुभव
कठ्ठीवाड़ा में ट्रैकिंग का भी अपना ही मजा है। गुजरात से बहकर आती नदी यहां झरने का रूप ले लेती है लेकिन इस झरने को देखने के लिए पर्यटकों को एक से डेढ़ किमी पैदल चलना पड़ता है और वह भी पहाड़ पर। पथरीला रास्ता, आसपास पेड़ और शोर के नाम पर केवल झरने की आवाज यहां का आनंद और भी बढ़ा देती है। पर यहां जाने के लिए बेहतर होगा कि आप किसी स्थानीय नागरिक की मदद लें। जहां से झरना गिर रहा है वहां भी पहुंचा जा सकता है और जहां गिर रहा है वहां भी बैठकर थकान मिटाई जा सकती है। बरसात में झरने का बहाव ज्यादा होने से उसके पास जाने का खतरा मोल न लें। इस स्थान पर खान-पान की व्यवस्था नहीं है इसलिए बेहतर होगा कि आप अपने साथ पर्याप्त मात्रा में खानपान की सामग्री ले जाएं।
आम, सीताफल और काजू के बाग भी हैं यहां
कठ्ठीवाड़ा में आप आम, सीताफल के साथ काजू और चारोली के पेड़ भी बहुतायत से देख सकते हैं। यहां पैदा होने वाला नूरजहां आम विश्वभर में प्रसिद्ध है। इसकी वजह है एक-एक आम का वजन 3 से 4 किलो तक होना। यहां दो पैलेस भी हैं जहां आज भी राजपरिवार के सदस्य छुट्टियां बिताने आते हैं।
800 वर्ष प्राचीन मंदिर
अध्यात्म की दृष्टि से भी यह स्थान बहुत अहम है। यहां डूंगरीमाता का मंदिर भी है। इनके दर्शन के लिए भी पहाड़ पर चढ़ना पड़ता है। हालंकि कुछ दूरी तक तो वाहन जाते हैं पर शेष दूरी पैदल ही तय करनी पड़ती है। यह मंदिर करीब 800 वर्ष प्राचीन है। यहां आदिवासी परंपरानुसार ही पूजा की जाती है। गुफा को ही मंदिर का रूप दे दिया गया है। पितृपक्ष के अंतिम दिन माता डूंगरी को पास की पहाड़ी पर लाया जाता है जहां उनका श्रृंगार होता है। मान्यता है कि यह पहाड़ी उनका मायका है। नवरात्र के पहले दिन माता फिर अपनी पहाड़ी पर भक्तों को दर्शन देने आ जाती हैं।