
नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। शहर की प्रसिद्ध हुकमचंद मिल के बंद हो जाने के बाद 5895 मजदूर और उनके परिवारों का 32 वर्ष का इंतजार खत्म होने का रास्ता शुक्रवार को साफ हो गया है। हाई कोर्ट ने मप्र गृह निर्माण मंडल को आदेश दिया कि वह तीन दिन के भीतर 425 करोड़ 89 लाख रुपये स्टेट बैंक आफ इंडिया की भोपाल शाखा में एक स्वतंत्र खाते में जमा करवाए। इस राशि में से मजदूरों को 174 करोड़ रुपये मुआवजा और इस पर 50 करोड़ रुपये ब्याज का भुगतान किया जाएगा। शेष राशि में से हुकमचंद मिल के अन्य देनदारों का भुगतान होगा।
कोर्ट 11 दिसंबर को अगली सुनवाई करेगा। इस दिन नगरीय प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव नीरज मंडलोई को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर शपथ पत्र प्रस्तुत करना है। शुक्रवार को न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर की एकलपीठ के समक्ष सुनवाई हुई। निर्वाचन आयोग के वकील ने कोर्ट को बताया कि हुकमचंद मिल मामले में भुगतान की अनुमति के संबंध में आवेदन मध्य प्रदेश गृह निर्माण मंडल की तरफ से प्राप्त हुआ था, जिसे स्वीकार लिया गया है और आचार संहिता के दौरान भुगतान की अनुमति दे दी गई है। कोर्ट ने इस पर मप्र गृह निर्माण मंडल से पूछा कि क्या वह भुगतान करने को तैयार हैं।
कोर्ट को जानकारी दी गई कि मंडल हुकमचंद मिल के मजदूरों और अन्य देनदारों को भुगतान करने को तत्पर है। इस पर मजदूरों की ओर से पैरवी कर रहे एडवोकेट धीरज सिंह पवार ने कहा कि मजदूर बेसब्री से भुगतान का इंतजार कर रहे हैं। उन्हें दीपावली से पहले राहत मिलने की उम्मीद थी लेकिन इस बार भी उनकी दीपावली सूनी रही। पवार ने कोर्ट से गुहार लगाई कि मंडल को तत्काल भुगतान के आदेश दिए जाएं। न्यायमूर्ति अभ्यंकर ने सभी पक्षकारों को सुनने के बाद राशि जमा कराने का आदेश दिया और यह भी कहा कि जिस बैंक खाते में यह रकम जमा होगी उसमें बगैर कोर्ट की अनुमति के कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकेगा।
दो दिन पहले हुकमचंद मिल मामले में ही कोर्ट ने नगरीय प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव नीरज मंडलोई की कार्यप्रणाली को लेकर तल्ख टिप्पणी की थी। कोर्ट ने नौ नवंबर को मजदूरों के भुगतान के लिए निर्वाचन आयोग से अनुमति प्राप्त करने के आदेश दिए थे लेकिन प्रमुख सचिव मंडलोई ने 23 नवंबर तक अनुमति के संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की। मंडलोई ने 23 नवंबर को अनुमति के लिए निर्वाचन आयोग को पत्र लिखा था। कोर्ट ने इसे गंभीर चूक मानते हुए मंडलोई को अवमानना नोटिस तक जारी कर दिया है। कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि प्रमुख सचिव का कृत्य समझौता निरस्त करने का प्रयास है।
12 दिसंबर, 1991 को हुकमचंद मिल प्रबंधन ने मिल बंद कर दिया था। इसके बाद से मिल के 5895 मजदूर अपने हक के लिए भटक रहे हैं। लगभग 16 वर्ष पहले हाई कोर्ट ने मिल मजदूरों के पक्ष में करीब 229 करोड़ रुपये का मुआवजा तय किया था। इसमें से 174 करोड़ रुपये अब तक मजदूरों को नहीं मिले हैं। इस राशि का भुगतान मिल की जमीन बेचकर किया जाना था लेकिन सात बार निविदाएं आमंत्रित करने के बावजूद मिल की जमीन बिक नहीं सकी। हाल ही में नगर निगम और मध्य प्रदेश गृह निर्माण मंडल ने संयुक्त रूप से मिल की जमीन पर आवासीय और व्यावसायिक प्रोजेक्ट लाने पर सहमति जताई है।