नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। मप्र हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने पति द्वारा क्रूरता के आधार पर दायर की गई तलाक की अपील को निरस्त करते हुए पत्नी के आचरण की प्रशंसा की है। कोर्ट ने पत्नी को एक 'आदर्श भारतीय महिला' बताते हुए कहा कि उसने लगभग दो दशकों तक परित्यक्त रहने के बावजूद एक पत्नी के रूप में अपने धर्म का पालन किया। वह अपने ससुराल वालों के साथ रही। उसने वैवाहिक जीवन के प्रतीकों को नहीं त्यागा।
कोर्ट ने कहा कि हिंदू अवधारणा के अनुसार, विवाह एक पवित्र, शाश्वत और अटूट बंधन है। एक आदर्श भारतीय पत्नी, अपने पति द्वारा परित्यक्त होने के बावजूद शक्ति, गरिमा और सदाचार का प्रतीक बनी रहती है। न्यायमूर्ति विवेक रूसिया और न्यायमूर्ति बिनोद कुमार द्विवेदी की युगलपीठ ने फैसले में कहा कि इस मामले में पत्नी का आचरण शक्ति स्वरूपा जैसा है और उसके धैर्य, शालीनता, विनम्रता और शक्तिशाली होने को दर्शाता है।
अपीलार्थी पति विशेष सशस्त्र बल में कांस्टेबल है। उसका विवाह वर्ष 1998 में हुआ था। वर्ष 2002 में दंपती को एक पुत्र हुआ। पति वर्ष 2006 से पत्नी से अलग रह रहा है, लेकिन उसकी पत्नी अपने बेटे के साथ ससुराल वालों के साथ ही रह रही है। पति ने कुटुंब न्यायालय के समक्ष पत्नी से तलाक के लिए याचिका दायर की थी, लेकिन कुटुंब न्यायालय ने उसकी याचिका निरस्त कर दी। इस फैसले को चुनौती देते हुए उसने हाई कोर्ट में अपील दायर की थी।
कोर्ट ने अपील को निरस्त करते हुए कहा कि अपील में दिए गए आधार खोखले हैं। कोर्ट ने कहा कि महिला, पति की अनुपस्थिति के बावजूद अपने ससुराल वालों के प्रति समर्पित रही। वह उनकी देखभाल और सेवा उसी तरह से करती रही जैसी पति की मौजूदगी में करती। उसने अपने दुख का उपयोग सहानुभूति पाने के लिए नहीं किया।
यह महिला के हिंदू आदर्श को शक्ति के रूप में दर्शाता है कि वह कमजोर नहीं है। सिर्फ इतना ही नहीं, जब उसे अकेला छोड़ दिया गया था तो भी उसने मंगलसूत्र, सिंदूर या अपनी वैवाहिक स्थिति के प्रतीकों को नहीं छोड़ा क्योंकि उसके लिए विवाह एक अनुबंध नहीं है, बल्कि एक संस्कार है - एक अमिट संस्कार है।
कोर्ट ने इस मामले को 'अनोखा' बताया और कहा कि पति द्वारा त्यागने के बावजूद पत्नी का अपने ससुराल में रहने का निर्णय असामान्य है क्योंकि अधिकांश विवादों में पत्नियां अलग रहने या अपने माता-पिता के साथ रहने चली जाती हैं।
न्यायालय ने कहा कि पति का यह दावा कि वह वैवाहिक दायित्वों को पूरा करने के लिए तैयार नहीं थी, इस तथ्य से 'झूठा' साबित होता है कि उनका बेटा विवाह संबंध से पैदा हुआ था और अब उसके और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ रहता है। ऐसी स्थिति में कुटुंब न्यायालय ने पति की ओर से प्रस्तुत तलाक की याचिका निरस्त करके सही किया है। हाई कोर्ट को कुटुंब न्यायालय के फैसले में किसी तरह के हस्तक्षेप की आवश्यकता नजर नहीं आती।