
नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। राज्य प्रशासनिक अधिकारियों की पदोन्नति एक बार फिर से उलझ गई है। एमपी लोकसेवा आयोग के वर्ष 2006 बैच के डिप्टी कलेक्टरों की वरिष्ठता को लेकर चल रहे विवाद में हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए पहले दिए गए अपने आदेश को रिव्यू याचिकाओं की सुनवाई के बाद वापस कर लिया है। अब सभी याचिकाओं पर दोबारा सुनवाई होगी।
एडीएम शालिनी श्रीवास्तव, भरतभूषण गांगले सहित वर्ष 2006 में पीएससी से चयनित होने वाले अन्य अधिकारियों ने वर्ष 2019 में हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। इन याचिकाओं में उन्होंने कहा था कि उनकी ज्वॉइनिंग के आधार पर उन्हें वरिष्ठता दी जाना चाहिए, जबकि राज्य सरकार विभागीय परीक्षा पास करने की शर्त पूरी नहीं होने से उनकी वरिष्ठता को 2010 से तय कर रही है। पांच वर्ष सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने वर्ष 2024 में अपना फैसला सुनाया था। इसमें कोर्ट ने सरकार से कहा था कि पीएससी 2006 बैच की वरिष्ठता का निर्धारण एमपी सिविल सेवा (सामान्य सेवा शर्तें) नियम, 1961 के तहत किया जाए और सभी अधिकारियों को इसका लाभ दिया जाए। इसके कारण अन्य अधिकारियों की वरिष्ठता प्रभावित हो रही थी।
जिन अधिकारियों की वरिष्ठता प्रभावित हो रही थी उन अधिकारियों ने हाई कोर्ट के इस फैसले को लेकर रिव्यू याचिका दायर की। इसमें उन्होंने कहा था कि वे इससे प्रभावित हो रहे हैं। याचिकाओं में उन्हें पक्षकार ही नहीं बनाया गया था। उन्हें सुनवाई का अवसर दिए बगैर वरिष्ठता तय करना न्यायसंगत नहीं है। रिव्यू याचिका में एक वर्ष से अधिक समय तक सुनवाई चली। सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने रिव्यू याचिका में फैसला सुरक्षित रख लिया था जो अब जारी हुआ है।
कोर्ट ने रिव्यू याचिका में दिए फैसले में कहा है कि वरिष्ठता एक नागरिक अधिकार है, जिन लोगों की वरिष्ठता प्रभावित होती है, उन्हें सुनवाई का अवसर दिए बगैर इस संबंध में कोई फैसला नहीं दिया जा सकता। आवश्यक और प्रभावित पक्षकारों को शामिल किए बिना दिया गया आदेश कानूनी त्रुटि है। कोर्ट ने माना कि पहले दिए गए आदेश में आवश्यक पक्षकारों की अनुपस्थिति के कारण रिकॉर्ड पर स्पष्ट त्रुटि हुई है। इसके चलते कोर्ट ने सभी रिव्यू याचिकाओं को स्वीकार कर लिया।
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कोर्ट ने वर्ष 2019 में दायर सभी याचिकाएं जिन्हें समाप्त कर दिया गया था को सुनवाई के लिए बहाल कर दिया है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि इस मामले की दोबारा पूरी सुनवाई होगी।
कोर्ट के इस फैसले का असर अधिकारियों के आइएएस अवॉर्ड पर भी होगा। इस फैसले का असर आइएएस अवॉर्ड की दौड़ में शामिल 30 से अधिकर अधिकारियों पर पड़ेगा।