लोकेश सोलंकी, नईदुनिया, इंदौर। इंदौर की दवा फैक्ट्री में बन रहा जहरीला कफ सीरप दो साल पहले ही पकड़ा जा चुका था। हालांकि कार्रवाई के बजाय मामला दबा दिया गया। पहले राज्य की लैब में दवा के सैंपल फेल हुए। इसके बाद केंद्र की ड्रग लैब में दवा जहरीली होने की बात साबित हुई। नियमानुसार रिपोर्ट के आधार पर दवा निर्माता के खिलाफ एफआईआर दर्ज होनी थी और कोर्ट में परिवाद दायर होना था, लेकिन अधिकारी रिपोर्ट छुपाते रहे।
अब छिंदवाड़ा में इसी रसायन वाले कफ सीरप से बच्चों की मौत हुई। हंगामा हुआ तो रिपोर्ट दबाने वाले अधिकारी लंबी छुट्टी लेकर गायब हो गए हैं। नए अधिकारी के हाथ पुराने मामले की फाइल लगी और खाद्य औषधि प्रशासन अब नियमों के अनुसार कार्रवाई की बात कर रहा है।
जानिए पूरा मामला
वर्ष 2023 में अफ्रीकी देश कैमरून में बच्चों की खांसी की दवा नेचर कोल्ड से 66 बच्चों की मौत की खबर सामने आई थी। दवा के रैपर को खंगालते हुए केंद्र और राज्य के अधिकारियों की टीम इंदौर की दवा कंपनी रीमन लैब में पहुंची। यहां से कफ सीरप के सैंपल लिए गए। भोपाल की ड्रग लैब में दवा के सैंपल फेल हो गए। इस जांच को चुनौती दी गई। सैंपल फिर से जांच के लिए कोलकाता की सेंट्रल ड्रग लैब भेज दिए गए।
यहां भी जांच में दवा में घातक रसायन डाईइथाइल ग्लाइकोल (डीईजी) की मात्रा 26 प्रतिशत से ज्यादा मिली, जबकि डब्ल्यूएचओ के मानक के अनुसार डीईजी की मात्रा 0.10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए। प्रकरण में नियमानुसार इस दवा को बनाने वालों के खिलाफ एफआईआर और परिवाद दायर होना था।
केंद्रीय लैब की रिपोर्ट को आए सालभर बीत गया, लेकिन इंदौर के खाद्य एवं औषधि प्रशासन के अधिकारियों ने फाइल दबा दी। जून में फिर से मामले में एक शिकायत भोपाल पहुंची। इसके बाद 30 जुलाई 2025 को प्रदेश के औषधि नियंत्रक ने इंदौर के वरिष्ठ औषधि नियंत्रक राजेश जीनवाल को लिखित निर्देश दिया कि दवा बनाने वाली कंपनी रीमन लैब्स के खिलाफ न्यायालय में प्रकरण दर्ज कराएं, लेकिन इंदौर के अधिकारी ने भोपाल के आदेश को भी ताक पर रख दिया और अब तक दवा बनाने वालों पर कार्रवाई नहीं की गई है।
देरी कर लाभ देने की कोशिश
पूरे मामले में इंदौर के वरिष्ठ औषधि निरीक्षक और उपसंचालक कार्यालय की भूमिका संदेह के दायरे में है। नियमानुसार सैंपल जांच में फेल होने के बाद तुरंत कानूनी कार्रवाई की जाती है। ताजा मामले में जानबूझकर कार्रवाई अटकाई जाती रही। भोपाल से ढाई महीने पहले निर्देश मिला तो भी इंदौर के अधिकारी ने कार्रवाई नहीं की। आशंका है कि भ्रष्टाचार में डूबा सरकारी सिस्टम ही जांच और प्रकरण को कमजोर करना चाहता था, क्योंकि समय बीतने के साथ दवा के सैंपल एक्सपायर्ड और नष्ट हो जाते। ऐसे में अदालत में सरकारी जांच रिपोर्टों को भी चुनौती देना आसान होता।
इस मामले में इंदौर के वरिष्ठ औषधि नियंत्रक राजेश जीनवाल की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं। मामला तूल पकड़ता देख जीनवाल अब छुट्टी पर चले गए हैं। नईदुनिया से भी उन्होंने बात करने से इंकार कर दिया।
किसने क्या कहा
अनामिका सिंह, वरिष्ठ औषधि नियंत्रक, इंदौर ने कहा कि “आज ही मुझे इंदौर का प्रभार मिला है। फाइल और प्रकरण संज्ञान में आया है। अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई इस संबंध में जानकारी मेरे पास नहीं है लेकिन अब खाद्य व औषधि प्रशासन नियंत्रक के निर्देश के अनुसार प्रकरण में कानूनी कार्रवाई के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।”
दिनेश मौर्य, तत्कालीन ड्रग कंट्रोलर ने कहा कि “मेरी याद है कि पूरे प्रकरण की जानकारी मिलते ही जुलाई में हमने इंदौर के अधिकारियों को दवा निर्माता के खिलाफ न्यायालय में परिवाद दायर करने का आदेश दिया था। इस पर क्या हुआ क्या नहीं इस पर अब टिप्पणी नहीं करना ठीक नहीं होगा क्योंकि मैं अब पदमुक्त हो गया हूं।”