
नईदुनिया प्रतिनिधि,इंदौर। कोई मकान तोड़ने की बात आती है तब तो आप टेक्निकल बातें नहीं करते बीआरटीएस को लेकर आपके सामने बड़ी तकनीकी समस्याएं आ रही है। होई कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ इंदौर निगम और प्रशासन की मंशा पर सवाल खड़े किए। युगलपीठ ने बीआरटीएस तोड़ने में हो रही देरी पर कलेक्टर शिवम वर्मा और निगमायुक्त दिलीप कुमार यादव दोनों को फटकार लगाई।सोमवार को हाई कोर्ट इंदौर के बिगड़े ट्रेफिक में सुधार को लेकर किए जा रहे अनमने प्रयासों से भी नाखुश दिखा।
इंदौर के बिगड़े ट्रैफिक को लेकर सोमवार को हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। कलेक्टर शिवम वर्मा और निगमायुक्त दिलीप कुमार यादव खुद मौजूद रहे। दरअसल बीती सुनवाई में दोनों अधिकारियों को हाई कोर्ट ने स्टेटस रिपोर्ट के साथ कोर्ट में हाजिर होने का निर्देश दिया था। जस्टिस विजय कुमार शुक्ला और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की युगलपीठ बीआरटीएस तोडऩे में हो रही देरी को लेकर जिम्मेदारों के जवाब से नाराज दिखी।
कोर्ट को रिपोर्ट में बताया गया कि बीआरटीएस तोडऩे का काम ठेकेदारों द्वारा किया जा रहा है, वे लगातार काम कर रहे हैं। ठेकेदारों के हिसाब से काम करने को लेकर कोर्ट ने अफसरों से सीधे सवाल किया कि आप लोगों के पास कितनी मशीनें हैं, कितने इंजीनियर हैं।
नगर निगम खुद ही इसे क्यों नहीं तोड़ रहा, कोई मकान तोडऩा हो तो आप तुरंत पहुंच जाते हैं। उल्लेखनीय है कि बीते समय से ठेकेदार और तकनीकी कारण बताकर लगातार बीआरटीएस को तोड़ने निगम देरी को सही ठहराता रहा है। कोर्ट ने कहा कि भोपाल में बीआरटीएस हटाने का काम नौ दिन में कर लिया गया।
जबकि इंदौर में हाईकोर्ट के आदेशों के बावजूद लंबे समय से कोई प्रगति दिखाई नहीं दे रही है। इस दौरान कोर्ट ने प्रशासन और नगर निगम के काम करने के तरीके पर टिप्पणी करते हुए कहा कि प्रशासन को तोडफ़ोड़ के दूसरे मामले खासकर जब मकानों पर बुलडोजऱ चलाना होता है तब तो आप लोग जल्दबाजी से काम करते हैं, उस समय गति इतनी तेज होती है कि प्रक्रिया का पालन भी नहीं किया जाता है।
कोर्ट ने इसके साथ ही 15 दिनों में पूरा बीआरटीएस तोडऩे के लिए आदेश दिया। तय अवधि में काम पूरा कर रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत करना होगी। साथ ही इस काम की निगरानी के लिए एक कमेटी बनाने का भी आदेश दिया है। ये कमेटी बीआरटीएस तोडऩे के काम की निगरानी करेगी।
शहर के बिगड़े ट्रैफिक को लेकर याचिका दायर करने वाली राजलक्ष्मी फाउंडेशन की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अभिभाषक अजय बागडिय़ा ने ट्रैफिक में लगने वाले समय और शहर की खराब सडक़ों को लेकर भी बात रखी। उन्होंने कोर्ट में दलील देते हुए यहां तक कह दिया कि अब तो कोई शहर के ट्रैफिक की बात करता है तो ये ही कहना पड़ता है मुस्कुराइए आप इंदौर में हैं।
सुनवाई के दौरान कोर्ट में साइलेंट जोन में होने वाले शोर का मुद्दा भी उठा। कोर्ट ने इस बात को खुद माना कि जिन जगह को साइलेंट जोन घोषित किया है। वहां भी लाउड स्पीकर का शोर होता रहता है। कोर्ट ने मौखिक तौर पर टिप्पणी करते हुए यहां तक कह दिया कि ये बात सही है, साइलेंट जोन में न्यायाधीशों के आवास भी आते हैं, लेकिन वहां भी लाउडस्पीकरों का शोर होता रहता है। ये एक बड़ी समस्या हो चुकी है, प्रतिबंधित क्षेत्रों में भी इस पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है।