itarsi News : इटारसी नवदुनिया प्रतिनिधि। मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण प्रदूूषण की चिंता किए बिना संचालित हो रहे रेलवे मालगोदाम की मनमानी का मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल पहुंच गया है। याचिकाकर्ता के वकील द्वारा पेश किए गए तथ्यों एवं सीमेंट-फर्टिलाइजर के रैक से बढ़ रहे प्रदूषण की शिकायतों को एनजीटी ने गंभीरता से लिया है। एनजीटी के विशेषज्ञ सदस्य शिव कुमार सिंह एवं डा. अरुण कुमार वर्मा की बैंच ने नर्मदापुरम कलेक्टर एवं मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक टीम गठित कर एक माह के भीतर मालगोदाम की वजह से बढ़ रहे प्रदूषण के स्तर को मापने, रेलवे के इंतजामों, आसपास रहने वाले लोगों की स्वास्थ्य जांच एवं प्रदूषण रोकथाम में लापरवाही को लेकर एक रिपोर्ट तलब की है। प्रकरण में याचिकाकर्ता द्वारा मंडल रेल प्रबंधक एवं महाप्रबंधक रेलवे को भी परिवादी बनाया गया है। रेलवे अफसर मालभाड़ा परिवहन से हो रही कमाई का ढिंढोरा पीटकर विभाग में अपने नंबर बढ़ाते रहे, लेकिन उनके मुनाफे के चक्कर में मानव स्वास्थ्य की अनदेखी लगातार की गई। कई सालों से यहां ट्रांसपोर्टर अफसरों से सुविधाएं देने की मांग कर रहे हैं, लेकिन अफसरों ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया।
नवदुनिया ने उठाया था मामला
रेलवे को हर साल मालभाड़ा परिवहन के रूप में करोड़ों रुपये की आय देने वाले मालगोदाम पर उतरने वाले सीमेंट एवं फर्टिलाइजर रैक की वजह से बड़े पैमाने पर पूरे इलाके में तेजी से जल, वायु एवं भूमि प्रदूषण हो रहा है। रेक के आसपास काम करने वाले हम्मालों, ट्रांसपोर्टर, रेलकर्मियों के साथ ही इस मार्ग से निकलने वाले लोगों एवं आसपास रिहायशी बस्ती के लोगों की सेहत से खिलवाड़ हो रहा है। याचिका में दावा किया गया है कि सीमेंट रैक लोडिंग-अनलोडिंग के दौरान हानिकारक धूल-धुएं के कण श्वांस प्रकिया में मानव शरीर में प्रवेश करते हैं, जिससे फेफड़ों में संक्रमण समेत अन्य बीमारियां होने का खतरा है। रोजाना यहां करीब 500 ट्रकों की एंट्री कच्चे धूल भरे मार्ग से होती है, जिससे भारी मात्रा में धूल-धुआं उठता है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं एनजीटी की गाइडलाइन का पालन रेलवे नहीं कर रही है, यहां ग्रीन एरिया, धूल-धुएं की रोकथाम के लिए अनिवार्य ढांचा एवं अन्य सुरक्षात्मक उपाय नहीं किए गए हैं, रेलवे भले ही इस इकाई से कमाई कर रही है, लेकिन मानव स्वास्थ्य की अनदेखी हो रही है। नवदुनिया ने सिर्फ माल पर ध्यान गोदाम भगवान भरोसे, बीमार कर रहा मालगोदाम जैसे शीर्षक से खबरों का प्रकाशन किया, जिसके बाद सांसद राव उदयप्रताप सिंह ने महाप्रबंधक को पत्र लिखकर मालगोदाम को शहर से दूर शिफ्ट करने की मांग उठाई थी।
हर्जाना मांग सकते हैं प्रभावित
सर्वे जांच में यदि मालगोदाम की वजह से हम्मालों, ट्रक आनर्स, रेलकर्मियों या आसपास रहने वाले लोगों की सेहत पर विपरीत असर होने की बात सामने आई तो इसके एवज में एनजीटी रेलवे को प्रभावितों को स्वास्थ्य हर्जाना देने या इलाज कराने के निर्देश भी दे सकता है। कलेक्टर एवं पीसीबी के सदस्यों को तय समय में पूरे मामले में विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर एनजीटी के समक्ष पेश करना होगा।
जानलेवा हो रही फिजा
कई दशक पहले जब स्टेशन बना, उसी दौरान रेक पाइंट के लिए रेलवे मालगोदाम यहां विकसित किया गया था, तब शहर की आबादी, वाहन एवं मालभाड़ा सीमित था, लेकिन अब जबलपुर जोन का बड़ा मालगोदाम होने से यहां लगातार डीओसी, गेहूं, सीमेंट, यूरिया के रैक लगते हैं, रेलवे ने पर्यावरण संरक्षण एवं मानव स्वास्थ्य के लिए कोई प्रयास नहीं किया, अफसरों ने सिर्फ रेलवे राजस्व बढ़ाने पर फोकस किया, लेकिन एनजीटी के संज्ञान में आने के बाद मालगोदाम में की जा रही लापरवाही पर रेलवे को जवाब देना मुश्किल हो जाएगा।
नोटिस जारी हुए
पक्षकार की ओर से हमने एनजीटी में अपील की थी, इस पर बैंच ने कलेक्टर नर्मदापुरम एवं पीसीबी सदस्यों को टीम गठित कर लोगों के स्वास्थ्य परीक्षण के अलावा जलवायु प्रदूषण के स्तर एवं मालगोदाम में की जा रही लापरवाही को लेकर रिपोर्ट मांगी है। एक माह का समय दिया गया है। रेलवे की लापरवाही से आसपास जल, वायु एवं मृदा प्रदूषण हो रहा है।
आयुष गुप्ता, याचिकाकर्ता के वकील।
वर्जन
सीमेंट-यूरिया के रैक में पीएम-2-10 स्तर का हानिकारक प्रदूषण बढ़ता है, यह मृत्युकारक है। सीमेंट कणों में मौजूद हानिकारक रसायन से त्वचा-आंखों का संक्रमण होता है, लगातार इसके कण श्वसन तंत्र में जमा हों तो फेफड़े काम करना बंद कर देंगे, कैंसर का खतरा भी रहता है। कीटनाशक यूरिया-खाद के दानों से भूजल जहरीला होता है, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ऐसी परियोजना निर्माण के लिए एक गाइडलाइन जारी की है, इसके तहत ही इनका निर्माण होना चाहिए।
डा. सुभाष सी. पांडेय, पर्यावरणविद।