
नईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर। हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विशाल धगट व बीपी शर्मा की युगलपीठ ने अपने एक आदेश में कहा कि विवाह का अपूर्णीय विघटन यानी इरिटेबल ब्रेकडाउन क्रूरता की श्रेणी में आता है। इस अवस्था में विवाह पूरी तरह टूट जाता है और दोनों पक्षों को दर्द होता है। रोजाना क्रूरता सहनी पड़ती है। उन्हें अपनी पसंद और जिंदगी में अपने पार्टनर चुनने की इजाजत नहीं मिलती।
कोर्ट ने कहा कि तलाक याचिका का विरोध करना, साथ रहने की इच्छा से नहीं बल्कि दूसरे पक्ष की मुश्किलें बढ़ाने के उद्देश्य से किया जाता है, और यह आचरण क्रूरता की श्रेणी में आता है। इसलिए विवाह विच्छेद की अपील स्वीकार की जाती है। मामला छिंदवाड़ा निवासी महिला द्वारा कुटुंब न्यायालय का आदेश चुनौती देने से संबंधित था।
पत्नी की ओर से आरोप
विवाह 24 मई 2002 को छिंदवाड़ा में हुआ।
दो बेटियां हैं, जो पति के पास हैं।
पति दहेज की मांग करता था, मानसिक-शारीरिक प्रताड़ना देता था।
शराब के नशे में मारपीट करता था और चरित्र पर आरोप लगाता था।
2009 और 2016 में जबरन घर से निकाल दिया गया।
पति की ओर से आरोप
वह दोनों बेटियों की देखभाल कर रहा है।
पत्नी ने जनवरी 2018 में बिना तलाक लिए दूसरी शादी कर ली।
बेटियों ने बयान में कहा कि मां ही उनके साथ क्रूरता करती थी।
पत्नी ने झूठे आधार पर तलाक की अपील दायर की है।
पत्नी ने बिना तलाक लिए दूसरी शादी की
सुनवाई में पाया गया कि पहले दोनों पक्षों ने हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के तहत संयुक्त तलाक अर्जी लगाई थी, जिसे 2015 में वापस ले लिया गया। इसके बाद अपीलकर्ता ने 2018 में दूसरी शादी कर ली और भरण-पोषण की याचिका भी वापस ले ली।
कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता ने बिना तलाक लिए दूसरी शादी की और वह दूसरे पति के साथ एक अवैध संबंध में रह रही है।
कोर्ट का अंतिम निर्णय
ट्रायल कोर्ट ने दूसरी शादी को अवैध माना।
अपीलकर्ता को अपने गलत कदमों का लाभ नहीं दिया जा सकता।
अपीलकर्ता को एलिमनी या संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होगा।
अनावेदक व बेटियां अलग रह रहे हैं, विवाह पूरी तरह टूट चुका है।
इरिटेबल ब्रेकडाउन क्रूरता की एक श्रेणी है।
तलाक की डिक्री जारी की जाती है।
कोर्ट ने कहा कि दूसरी शादी चाहे अवैध हो, पर पहली शादी समाप्त मानी जाती है और अपीलकर्ता को अपनी पसंद से जीवन जीने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।