
नईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर: हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा व न्यायमूर्ति विनय सराफ की युगलपीठ ने प्रदेश की अधीनस्थ अदालतों से सेवानिवृत्त जजों के हक में राहतकारी आदेश पारित किया है। इसके तहत अब उन्हें लाइफ सर्टिफिकेट प्रस्तुत करने की औपचारिकता से निजात मिल गई है। पूर्व में उन्हें प्रतिवर्ष नवंबर माह में भत्तों के भुगतान के लिए लाइफ सर्टिफिकेट देना पड़ता था।
हाईकोर्ट के निर्देश पर राज्य शासन की ओर से जवाब प्रस्तुत किया गया। जिसमें अवगत कराया गया कि इस सिलसिले में जारी परिपत्र को वापस ले लिया गया है। सरकार के जवाब को अभिलेख पर लेकर हाई कोर्ट लाइफ सर्टिफिकेट की अनिवार्यता को चुनौती देने वाली दो याचिकाओं का निराकरण कर दिया।
दरअसल, फार्मर जजेस वेलफेयर एसोसिएशन इन्दौर के महासचिव गुलाब शर्मा और जेपी राव की ओर से दायर याचिकाओं में कहा गया था कि प्रदेश की निचली अदालतों से रिटायर होने वाले जजों को प्रदेश सरकार मेडिकल व घरेलू भत्तों का भुगतान करती है। 13 दिसंबर, 2024 को प्रदेश सरकार के वित्त विभाग ने एक आदेश जारी करके यह बाध्यता लगा दी कि इन भत्तों को पाने के लिए निचली अदालतों से रिटायर हो चुके जजों को उसी जिले में जाकर नवम्बर माह में अपना लाइफ सर्टिफिकेट जमा, जहां से वो रिटायर हुए हैं।
याचिका में कहा गया है कि रिटायरमेंट के बाद अधिकांश जज देश के दूसरे प्रदेशों या फिर विदेश में रहने लगे हैं। ऐसे में उन्हें लाइफ सर्टिफिकेट जमा करने के लिए बाध्य किया जाना अनुचित है। मामले पर हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से शासकीय अधिवक्ता अनुभव जैन ने बेंच को बताया कि हाल ही में 13 दिसंबर, 2024 को जारी परिपत्र को पूरी तरह से वापस ले लिया गया है।
इस बयान के मद्देनजर बेंच ने याचिकाओं का निराकरण कर दिया। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय राम ताम्रकार, अधिवक्ता अविनाश कुमार और सतीश कुमार श्रीवास्तव ने पक्ष रखा।
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